Thursday 28 January 2016

आनंदपुर साहिब टू चंडीगढ़ रिटर्न यात्रा

चंडीगढ़ से आनंदपुर साहिब पहुँचने की सारी थकान रात भर में उतर चुकि थी | सुबह नाश्ता करके करीब 10 बजे सराय से निकल पड़े | पार्किंग से साइकिल की सवारी शुरू की गई | पास ही विरासत--खालसा देखने गए |



विरासत खालसा एक hitech मॉडर्न म्यूजियम है | यहाँ सिख इतिहास को बहुत ही डिजिटल तरीके से एक्सप्लेन किया गया है | कला और टेक्नोलॉजी का बेजोड़ मास्टरपीस है | अब तो शायद सांस्कृतिक विरासत को बचाने का यही तरीका रह गया है |
विरासत खालसा देखने के बाद रिटर्न जरनी प्लान की गई | शुभम जी और गुरु जी दोनों ने बस में वापिस जाने का प्लान बनाया लेकिन मैं कहाँ साइकिल छोड़ के बस में बैठने वाला था | गुरूजी ने अपनी 26000 की साइकिल ऑफर की लेकिन मैं अपनी ग्रेट इंडियन रोड बाइक हीरो हॉक को कहाँ छोड़ने वाला था  | दोनों से विदा लेकर मैं करीब 11:30 बजे अकेला ही चंडीगढ़ की तरफ निकल पड़ा |
आनंदपुर से किरतपुर तो आराम से पहुँच गया | कीरतपुर से भरतगढ़ की तरफ चढाई है वहां गियर वाली साइकिल की याद तो बहुत आई मगर जैसे तैसे बिना रुके चढाई चढ़ गया |

रोपड़ से करीब 5 Km पहले बस में से शुभम जी मुझे बाय करके चले गए | आनंदपुर से नॉन स्टॉप चलता हुआ रोपड़ पहुंचा | वहां पानी पीने के बाद कुराली पहुंचा | इस बार कुराली फ्लाईओवर के नीचे से जाने की सोचीनीचे ट्रैफिक बिलकुल भी नहीं था | थोड़ी दूर जाने के बाद कारण भी साफ़  हो गयानीचे रेलवे लाइन है जहाँ कभी फाटक होता था लेकिन शायद फ्लाईओवर बनने के बाद रेलवे वालों ने फाटक परमानेंटली ही बंद कर दिया | पैदल चलने वालों के लिए निकलने का रास्ता है वहीँ से साइकिल उठा के दूसरी और पहुंचा दी और फिर से चंडीगढ़ की ओर चल पड़ा |

कुराली से चंडीगढ़ की तरफ नरम चढाई है | जोश से भरा हुआ मैं साइकिल भगाता हुआ चला जा रहा था |
मुल्लांपुर के करीब गुरूजी का फ़ोन आया और कहा की हम पहुँच गए हैं और मैंने कहा की 30 मिनट मे मैं भी पहुँच रहा हूँ | करीब 3:30 बजे मैं भी अपने हॉस्टल पहुँच गया |

  
आनंदपुर से चलते समय मैंने यात्रा के लिए 4 घंटे का टारगेट सेट किया था और जब हॉस्टल पहुँच के मैप चेक किया तो यात्रा बिलकुल एस्टिमेटेड टाइम में पूरी की थी | जब आप अपनी उमीदों पे खरे उतर जाओ तो जो सुकून मिलता है, उसका स्वाद ही अलग है |

इस यात्रा का पिछला भाग यहाँ पढ़ें

चंडीगड़ से आनंदपुर साहिब की यात्रा का विवरण

चंडीगढ़ से घर तक की 250 किलोमीटर की यात्रा के बाद मैं अपनी साइकिल घर छोड़ वापिस चंडीगढ़ गया, लेकिन साइकिलिंग का कीड़ा तो जाग चुका था | वापिस के एक सेकिण्ड हैंड हीरो हॉक खरीद ली | मेरी घर तक की यात्रा का किस्सा हॉस्टल में ब्रेकिंग न्यूज़ बन चुका थासाइकिल का क्रेज अब मेरे तक ही सीमित था, मेरे करीबी दोस्त शुभम जी ने भी साइकिल खरीद ली |
 आनंदपुर साहिब जाने का प्रोग्राम तो हफ्ता पहले से ही बन गया था, लेकिन इंतज़ार तो बस गुरु जी के आने का | गुरु जी का ज़िक्र हुआ है तो उनके बारे में जितना बोला जाए कम ही होगा | ट्रैकिंग के उस्ताद और जिवंत शख्सियत ,हिमाचल का तो शायद ही कोई पहाड़ होगा जो उन्हें जानता होगा | गुरु जी की वेबसाइट पर उनके कारनामे देखे जा सकते हैं :  (tarungoel.in)|

गुरु जी के आने बाद प्रोग्राम पक्का किया गया और 22 जनवरी दिन शुक्रवार की दोपहर करीब 1:30 बजे यात्रा शुरू की गई |
सेक्टर 12 से मध्यमार्ग पर चलते हुए न्यू चंडीगढ़ वाली रोड़ से कुराली चंडीगढ़ रोड़ पर पहुंचे | कुराली रोड़ पर गुड़ बनाने वाली फैक्ट्री से आधा किलो गरमा गर्म  गुड़ खरीदा और वहां काम करने वाले लोगों से बातचीत की |



गुड़ फैक्ट्री कुराली रोड 

कुराली पहुंचना आसान था क्यूंकि चंडीगढ़ से कुराली की तरफ ढलान है | अभी तक यात्रा एक दम स्मूथ चल रही थी लेकिन कुराली फ्लाईओवर पार करना तो बहुत मुश्किल काम था | पहले तो ट्रैफिक के साथ फ्लाईओवर के रोड़ पे चढ़ गए लेकिन जब ट्रक और बसें थपकी देकर साइड लाइन करके जाने लगीं तो जान बचने के लिए साइकिल उठा के साइड में बने पेडेस्ट्रियन पाथ पे चलाने लगे | जब फ्लाईओवर ख़त्म हुआ तो एक जोरदार जम्प के साथ फ्लाईओवर के पेडेस्ट्रियन पाथ से सड़क पर गए | कुराली से रोपड़ करीब 3:30 बजे पहुंचे और रोपड़ से किरतपुर की तरफ हो लिए |

शुभम जी की तो यह पहली यात्रा थी और नई साइकिल थोड़ी भारी भी चल रही थी बेचारे बड़ी होशियारी से अपनी थकान छुपा रहे थे | मलिकपुर  पहुँच कर हमने साइकिल एक्सचेंज कर ली | मलिकपुर से कुछ दूर आगे नहर के ऊपर से फ्लाईओवर है | फ्लाईओवर के ऊपर से जाकर मैंने साइकिल नीचे से निकालने की सोची और फ्लाईओवर से नीचे वाली रोड़ पे चल पड़ा | आगे जा के रोड़ किसी गाँव की तरफ मुड़ गया और तब मुझे एहसास हुआ की शॉर्टकट तो लॉन्ग कट बन गया है | फिर U टर्न लेकर वापिस सही रोड़ पे आया और इस सब के बीच साइकिल की घंटी कहीं गिर चुकी थी |

घनौली से थोड़ा आगे जा के एक जूस वाले के पास डेरा जमाया गया | साइकिल का जायज़ा लिया गया | जूस पिने के बाद थकान मिट चुकि थी | ह सभी अपनी अपनी साइकिल पे सवार हो गए और यात्रा फिर से रिज्यूम की गई | अँधेरा होने लगा था |

भरतगढ़ से करीब 3 किलोमीटर पहले उतराई उतरते समय यात्रा की टॉप स्पीड 51 KM/Hr हासिल की गई | टॉपस्पीड के चक्कर में मैं काफी आगे गया था और पसीने से मेरे कपडे भी भीग चुके थे | मैंने सोचा कहीं रुक के आग जलायी जाए और इसी बहाने नए मैग्नीशियम फ्लिंट की भी टेस्टिंग की जाए | साइकिल सड़क के किनारे लगा के घासफूस इकठ्ठा की | आग जला के जैकेट सुखाई गई और गुड खाया गया | थोड़ी देर आग सेकने और इंतजार करने के बाद गुरु जी और शुभम जी भी गए |
किरतपुर पहुँच कर शुभम जी ने रात वहीँ बिताने का इरादा जताया लेकिन गुरु जी और मैंने बड़ी मुश्किल से उनको समझा-भुजा के आज ही यात्रा ख़त्म करने के लिए राजी किया | एक बार फिर से साइकिल बदल लिए गए | अँधेरा हो चुका था और शुभम जी की साइकिल लाइटों से चमचमा रही थी |
किरतपुर से आनंदपुर की तरफ नरम चढ़ाई है लेकिन थकान के मारे हमने आराम-आराम से साइकिल चलना शुरू कर दिया |
किरतपुर से आनंदपुर की तरफ बढ़ते हुए गुरद्वारों के नाम सिख हिस्ट्री की कहानियां याद दिला देते हैं | आनंदपुर साहिब के दर्शन हुए तो हम जोश से भर गए | करीब 7:30 बजे हम अपनी मंजिल पे पहुंचे |

 
आनंदपुर साहिब पहुंच कर साइकिल पार्किंग में गड़े एक खम्भे से बांध दिए गए और माथा टेकने चल पड़े | माथा टेक कर रहने का इंतजाम किया गया |सराय में तीन लोगों के लिए कमरा लिया सिर्फ 100 रूपए में मिल गया | कमरे में सामान रखने के बाद लंगर छका |
पेट पूजा के बाद कमरे में वापिस कर तो हम घोड़े बेच कर सो गए |

 
     

Thursday 14 January 2016

चंडीगढ़ से हिमाचल के जिला काँगड़ा के मैदानों तक की यात्रा का संक्षिप्त विवरण

आजकल इकोफ्रैंडली होने का ट्रेंड चला है, इसी चक्कर में मैंने PAYTM से साइकिल (Kross Maximus Rs. 5300) आर्डर कर दी । कुछ दिन साइकिल चलाने के बाद सोचा की अपनी फिटनेस का लेवल चेक किया जाए और घर तक की यात्रा साइकिल पे की जाए। मैं चंडीगढ़ में पढता हूँ और मेरा घर हिमाचल के जिला काँगड़ा की इंदौरा तहसील के इंदपुर गाँव में पड़ता है। इलाका पंजाब से सटा हुआ है एक दम हिमाचल पंजाब के बॉर्डर पर। 

30 दिसम्बर 2015 की सुबह 6:30 के करीब यात्रा शुरू की गयी। चंडीगढ़ से मुल्लांपुर होते हुए, कुराली-चंडीगढ़ रोड़ पर चलने लगा | थोड़ा आगे चल के दाहिने हाथ मानकपुर की तरफ मुड़ गया | यह छोटा रास्ता है सीधा रोपड़ निकलता है | चंडीगढ़ से थोड़ी दूर चलने के बाद मानकपुर शरीफ दरगाह पहुंचा| स्पीकर पर आजान की आवाज दूर तक मेरे साथ चलती रही ।फिर खिजराबाद पहुंचा वहां से रोपड़ के लिए लिंक रोड है। अवैध क्रशर और ओवरलोडेड टिपरों के भार से सड़क लापता हो गई है लेकिन दोनों तरफ गेहूं के खेत हैं और जो बीच में जगह है , वही सड़क का पता है । 

हालत बहुत खस्ता है और शायद हर गाँव की अब यही कहानी है। निकले हुए 2 घंटे हो चुके थे और सूर्य देव भी अपना शक्ति प्रदर्शन करने लगे और पीठ धूप से तपी जा रही थी और छाती ठण्ड और पसीने से जमी जा रही थी । आखिर में मैं एन.एच 21 पे पहुँच गया ।कुछ दूर चलने के बाद रोपड़ पहुंचा | रोपड़ से पठानकोट जाने वाली रोड़ पकड़ ली और आगे जाने पे एक पुराना चेक डैम-पुल आया, दोनों तरफ चौड़ी सड़क और बीच में तंग पुल ट्रैफिक से भरा हुआ मानो किसी ने हाई टेंशन वायर पे रेजिस्टेंस लगा दी हो। 

पुल पार करके थोड़ी और आगे एक रेन शेल्टर में रेस्ट करने के लिए रुका| धूप जवान हो चुकी थी और मैं भी पूरा ‘वार्मेड अप’ हो चुका था। स्वेटर और विंडचीटर उतार के बैग में डाल दिया गया और सनग्लासेस लगा लिए गए । मैप चेक किया तो पता चला 3 घंटे में 52 किलोमेटेर यात्रा कर चुका था। 

15 मिनट बाद यात्रा फिर शुरू की गयी थोड़ी दूर चलने पे सड़क के किनारे गुरद्वारे की तरफ से लंगर चल रहा था । रुक के ‘पर्शादा’ छका और रोह (गन्ने से गुड़ निकाल लेने के बाद बचा रस) पिया वहां सरदार जी से बातचीत हुई तो पता चला लंगर 24X7 चलता है । फिर से साइकिल पे सवारी शुरू की और बलाचौर पहुंचा जहां पठानकोट से चंडीगढ़ जाने वाली रोडवेज़ की बसें चाय पानी के लिए रूकती हैं और सवारियां लाइन में खड़े होके मोदी जी के सवच्छ भारत अभियान को बहाने की पूरी कोशिश करती हैं। 

बलाचौर पार करके गढ़शंकर की तरफ बढ़ गया आधा घंटा और चलने के बाद थकान महसूस होने लगी सड़क के किनारे रुक कर टाइम देखा तो सवा बारह हो चुके थे। बैग का सिरहाना बना कर वहीँ पुल पे लेट गया और कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला। 40 मिनट बाद एक तेज रफ़्तार रोडवेज़ की बस हॉर्न बजाते हुए करीब से निकली तब जा के नींद खुली| 

करीब 3 बजे गढ़शंकर पहुंचा और वहां से होशियारपुर जाने वाली रोड पकड़ ली और 2 घंटे बाद होशियारपुर पहुंचा। 

एक जूस वाले के पास ब्रेक लगाई और एक जग जूस का आर्डर दे दिया आस पास खड़ी जनता हैरान और उत्सुक नज़र आ रही थी और पहल करते हुए जूस वाले ने ही पूछ लिया भाई कहाँ से आये हो कहाँ को जाओगे मैंने भी लोग देख कर जवाब दिया की गढ़शंकर से आया हूँ दसूहा जा रहा हूँ और तब तक एक सरदार जी सबको साइकिल के गियर की फिजिक्स समझाने में व्यस्त हो चुके थे और मैं खुद को बायोलॉजी की लैब में टंगे हुए स्केलटन की तरह महसूस कर रहा था जिसके एक एक पार्ट की जानकारी डिटेल में दी जा रही थी। 5 बज चुके थे और मैं काफी थक भी गया था फिर सोचा की बाकि की यात्रा कल की जाये और आज रात होशियारपुर में बुआ जी के पास बितायी जाए । 

इसी उम्मीद के साथ मैं बुआ जी के क्वार्टर पहुंचा । बाहर वाली जाली पे कुण्डी लगी थी। कुण्डी को देख कर ही सोच पूरी नेगेटिव हो गयी और हालत यह थी कि मैं साइकिल से उतरा ही नहीं और यह सोच के आगे बढ़ गया की कुण्डी के पीछे दरवाजे पे भी ताला ही होगा। फिर वापिस यात्रा शुरू की होशियारपुर से पठानकोट की तरफ हौंसला पस्त हो चुका था और मैं सड़क के किनारे साइकिल चलाता-चलाता यही सोच रहा था कि घर पहुँचने से पहले कहीं शरीर जवाब न दे जाए। 

तभी एक गन्ने से लदा हुआ ट्रेक्टर मेरी साइड से निकला। मैंने भी साइकिल टॉप गियर में डाली और थोड़ी ही देर में ट्राली से लटकी हुई रस्सी पकड़ की जिससे की गन्नो को बांधा गया था और मैं इस लिफ्ट के नज़ारे लेने लगा। यह सोच के खुश हो रहा था की 10 बजे तक घर पहुँच जाऊंगा, लेकिन कुछ देर बाद ट्रैक्टर भार तोलने के लिए मुड़ गया, लेकिन तब तक में आगे की यात्रा के लिए मेंटली प्रिपेयर हो चुका था और होंसला फिर से बुलंद था। 

दसूहा पहुँचते पहुँचते अँधेरा घिर आया था । मेरे पास न तो लाइट थी और न साइकिल पे रिफ्लेक्टर और मैँ बिलकुल सड़क के कोने में साइकिल चला रहा था ताकि किसी हादसे से बचा रहूँ। शायद दसूहा से पठानकोट की तरफ ढलान है क्युकी साइकिल चलाने में अब उतना जोर नहीं लगाना पड़ रहा था लेकिन जब कभी पीछे से लाइट पड़ती और तेजरफ्तार गाड़ियां साइड से निकलती तो जान हलक में आ जाती। 

थकान से चूर हुआ मैं मुकेरियां पहुंचा। टाइम दुकाने बंद होने का हो चुका था इसलिए मैंने बिस्कुट और जूस खरीद लिया और सड़क के किनारे ही डिनर कर लिया। थोड़ी देर रेस्ट करके फिर से सवारी शुरू की। रात हो गयी थी। 10 बज चुके थे और ट्रैफिक भी बहुत कम हो गया था रोड़ भी दिखाई नहीं दे रहा था। बार बार साइकिल रोड से नीचे उतर जाती और वापिस रोड़ पे आने के लिए और जोर लगाना पड़ता इसलिए मैंने साइकिल सड़क के किनारे बनी सफ़ेद लाइन के ऊपर चलना शुरू कर दी। रात के समय वह सफ़ेद लाइन साफ़ नज़र आ रही थी और मैं सिर्फ सफेद लाइन के ऊपर ही साइकिल चलाने की कोशिश करता। यह एक खेल बन गया था कि कितनी देर तक मैं सफ़ेद लाइन के ऊपर साइकिल चला पता और लाइन के ऊपर चढ़ते ही गिनती गिनना शुरू कर देता। ऐसा करते करते थकान से ध्यान हट गया और दिमाग मैं भी नेगेटिव ख्याल नहीं आये। मैं मीरथल पहुँच चुका था। 

मीरथल से इंदौरा के लिए रास्ता जाता है लेकिन बीच में आर्मी एरिया है जिसके गेट 9 बजे बंद हो जाते हैं। मैं मीरथल से इंदौरा जाने वाली रोड पे यह सोच के चल निकला की फौजी भाइयों से बातचीत करके कोई रास्ता निकाल लूंगा। 10:30 बजे मैं आर्मी एरिया के गेट पे पहुंचा सामने कोई नहीं था। एक दो बार आवाज भी लगाई मगर कोई नहीं दिखा। फिर गेट के पास बनी पोस्ट में झाँका वो भी खली थी। मैं फिर से निराश हो चुका था। गेट पे लगा ताला बुआ के दरवाजे पे लगे इमेजिनरी ताले से भी भरी था। 

मैं फिर से हाईवे पे चल पड़ा वही सफ़ेद लाइन का खेल खेलते हुए, लेकिन अब हिमाचल अपना अस्तित्व बता रहा था और चढाई शुरू हो गई थी। मैं 11 बजे नंगल भूर पहुंचा। यहाँ से कंदरोडी होते हुए इंदौरा के लिए रास्ता जाता है। इंदौरा वैसे तो कंदरोडी से 9 किलोमीटर ही है मगर रास्ता जैसे ऊँट की पीठ पे साइकिल चला रहे हों।




यहाँ भी वही कारण, क्रशर और इंडस्ट्रियल एरिया का सामान ढोने वाले ट्रक। सड़क पर अब वो सफ़ेद लकीर भी नहीं थी लेकिन इलाका मेरा था, रोड़ पूरा याद था। साइकिल का पेडल आवाज करने लगा था, मानो मुझसे रहम की अपील कर रहा हो। कुत्ते भौंकते और मैं पेडल पर और जोर लगता और जोर की आवाज आती चीईन्न्न्न्न्न्न्न्न्न और मैं कुत्तों को डरा देता । 

मैं इंदौरा पहुंचा, इंदौरा से मेरा घर 4 Km ही है लेकिन इन्हीं 4 किलोमीटर मैं मनो हिमालय पंजाब के मैदानों से उठ खड़ा होता है। अब साइकिल लो गियर में चल रही थी और धीरे धीरे मैं घर के और पास आता जा रहा था। आखिर में 50 मीटर की चढ़ाई है तीखी नहीं है पर चढ़ते-चढ़ते दिल सिर में धड़कने लग गया था और आखिरकार मैं अपने घर पहुँच ही गया।

लड़ाई सारी दिमाग की ही थी|