Friday 23 December 2016

गियर वाली साइकिल vs बिना गियर वाली (सिंगल स्पीड)



ये है मेहेंगे वाली
साइकिल ये
गियर वाली
तीखी चढ़ाई हो
या कीचड़, रेत, बजरी
ये सब जगह है चलती
इसको चलाना आसान है
यांत्रिक उन्नति का वरदान है
बस गियर बदलने की है मगज मारी
टना-टन है इस साइकिल की सवारी
इसमें जांघों का ज़ोर कम लगता है
नियंत्रण भी अच्छा बनता है
जहाँ कहीं भी जाओगे
वहां आपको कोई नहीं पूछेगा
आप तो बस
साइकिल का ब्यौरा बताओगे
इसका सवार अगर मुश्किल मंज़िल भी पायेगा
तो तारीफ तो साइकिल की होगी
हर कोई साइकिल के ही गुण गाएगा
भाई
3 आगे
8 पीछे
बहुत गियर हैं इसमें
तभी चढ़ गया तू पहाड़ पर
ऐसे कहाँ पहुँचता तू पहाड़ पर
खैर विज्ञान तो यह है कहता
एक ही कार्य के लिए
ऊर्जा का संरक्षण रहता
फिर गियर वाली हो या बिना गियर वाली
ऊर्जा व्यय तो एक ही रहता है
फर्क सिर्फ इतना है कि
गियर वाली में ऊर्जा धीरे-धीरे लगती है
और बिना गियर वाली में
हर बार पुरे दम से जान लगती है
पर आम आदमी को कौन समझाए
ये विज्ञान का भेद कौन बताए

और दूसरी है
सस्ते वाली
साइकिल ये
बिना गियर वाली
चढ़ाई चढ़ाने में
दम लगता है
रेत, बजरी से निकालने में
दिमाग लगता है
रास्ते के अनुसार
ढलना पड़ता है
चढ़ाई खड़ी हो तो
पैदल चलना पड़ता है
ये साइकिल तराश डालती है
जांघों को लोहा बना डालती है
दिमाग बना देती है महत्वाकांक्षी
निगाह को बना देती है दूरदर्शी
आपको रास्ते का हिसाब लगाना सिखाती है
ये दुनिया के रंग दिखती है
इसपे कहीं भी जाइये
और बेहतर हो कर आईये
लोग आपका हाल-चाल पूछेंगे
साइकिल का कोई जिक्र नहीं होगा
और किसी मुश्किल लक्ष्य की फतह का
सेहरा आपके सिर होगा

कौन सी साइकिल लूँ ?
गियर वाली या बिना गियर वाली ?

ये सवाल अक्सर साइकिल लेने वाले हर शख्स के दिमाग में आता है | चलिए आज इसी मुद्दे पर बात करते हैं कि गियर वाली या बिना गियर वाली दोनों में से बेहतर कौन सी है |

सबसे पहले तो यह जान लेते हैं कि गियर क्या होते हैं और इनसे होता क्या हैं ?

साधारण भाषा में बोलें तो गियर प्रणाली वह व्यवस्था है जिसके द्वारा हम अपने द्वारा लगाया जाने वाला बल कम या ज्यादा कर सकते हैं | ऐसा गियर के व्यास, गरारी के दांतों की संख्या को बदल कर किया जाता है | गियर वाली साइकिल में यह कार्य चैन को ऊपर-नीचे, अलग-अलग व्यास तथा भिन्न-भिन्न दांतों की संख्या वाली गरारियों पर सरका के किया जाता है | गियर वाली साइकिल में चैन को ऊपर नीचे करने (गियर बदलने कि प्रणाली) होने के कारण ज्यादा गतिमान कलपुर्ज़े होते हैं जो इसके खराब होने कि आशंका को बढ़ा देते हैं | वहीँ बिना गियर वाली साइकिल में ऐसी प्रणाली न होने के कारण, ज्यादा भरोसेमंद मानी जाती है और इससे साइकिल का वज़न भी कम रहता है | बिना गियर वाली साइकिल में एक ही गियर अनुपात होता है जिसे आप बदल नहीं सकते तभी इसे सिंगल स्पीड (single speed or ss) साइकिल भी कहते हैं | खैर साइकिल का यांत्रिक पक्ष अगली पोस्ट में रखूँगा अभी अपनी चर्चा साधारण मनुष्य की समझ तक सीमित रखते हुए इस प्रश्न का उत्तर ढूंढते हैं कि गियर वाली या बिना गियर वाली साइकिल में कौन सी बेहतर है |


गियर वाली साइकिल की बात करें तो ये आपको यह सहूलियत देती है कि आप रास्ते के हिसाब से साइकिल को व्यवस्थित कर सकते हैं | जैसे आप चढाई चढ़ रहे हों तो निचले गियर में आसानी से चढ़ सकतें हैं जबकि बिना गियर वाली साइकिल में आपको पेडल को धकेलने के लिए पूरा ज़ोर लगाना पड़ता है | अक्सर मैंने देखा है कि जब चढाई पर लोग थक जाते हैं तो गुस्सा फिर गियर शिफ्टर पर निकलता है | खचर-खचर कि आवाज़ के साथ 21000 कि साइकिल कि चैन उतर गई; हाँ भाई, सच में उतर गई थी दूसरी बार कसौली जाते समय मेरे साथ चलने वाले एक दोस्त की साइकिल कि ! उसके मुंह पर एक ही सवाल था, कि अगर 21000 खर्च करके भी चैन उतर रही है तो क्या फ़ायदा लेने का ? खैर मैं यही कहना चाहता हूँ कि साइकिल कोई भी हो अगर ये सोच कर चलाओगे कि महँगी है, इसको कुछ नहीं होगा तो आप गलत हो | साइकिल तो आपको सही तरीके से ही चलानी पड़ेगी | पर थका हुआ इंसान कहाँ इतना याद रखता है, उसके दिमाग में तो यही चलता है कि गियर बदल लूँ तो आसानी से चढ़ जाएगी और चढाई पर गियर बदलना, ये कला तो भाई साधनी पड़ती है | खैर बिना गियर वाली साइकिल में ऐसी कोई मगज मारी नहीं करनी पड़ती | आपका बस एक ही काम है ज़ोर लगाना, जहाँ तक चढ़ती है वहां तक चढ़ाओ फिर नीचे उतर जाओ और पैदल चलो, नज़ारे लेते हुए !


भारतीय परिवेश कि बात करें तो गियर वाली साइकिल को बिना गियर वाली साइकिल से उत्कृष्ट समझा जाता है | लोग सोचते हैं कि जितने ज्यादा गियर होंगे उतनी आसानी से साइकिल चलेगी | भाई गियर वाली साइकिल तो खड़ा पहाड़ चढ़ जाती है, ये 24 स्पीड है ! इसके आगे तेरी देसी साइकिल नहीं टिकेगी | खैर हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है | बहुत बार तो ऐसा हुआ है कि मेरे दोस्त अपनी गियर वाली साइकिल पर धीरे-धीरे चढाई चढ़ रहे थे और मैं पैदल ही इतना तेज़ चल रहा था कि उनसे आगे निकल आया !

चलिए अब बज़ट पर आते हैं | गियर वाली साइकिल बिना गियर वाली साइकिल से ठीक-ठाक महँगी होती है | अच्छी क्वालिटी कि गियर वाली साइकिल आपको कम से कम 15000 तक कि पड़ेगी वहीँ बिना गियर वाली 5000 कि मिल जाएगी | गियर वाली साइकिल के रख-रखाव का खास ध्यान रखना पड़ता है और एक बार कि सर्विस के 500 से 1000 रुपए तक लग जाते हैं वहीं बिना गियर वाली साइकिल का कोई खास झंझट नहीं है, महीने में एक बार तेल डाल दीजिये, बिंदास चलती रहेगी और खराब हो जाए तो शोरूम के चक्कर लगाने कि जरुरत नहीं है सड़क किनारे वाले भईया भी ठीक कर देंगे इसको |


अब सेहत कि बात करते हैं | अगर आप साइकिल चला कर वज़न कम करना चाहते हैं तो ये बात ध्यान से सुन लीजिये कि साइकिल आप जितनी मर्जी चलाईये जब तक खान-पान पर नियंत्रण नहीं होगा तब तक वजन कम नहीं होगा फिर साइकिल चाहे गियर वाली चलाएं या बिना गियर वाली | आप बूढ़े नहीं हैं और फिटनेस चाहते हैं तो मेरी राय यही है कि बिना गियर वाली साइकिल ही चलाएं, ये आपकी टाँगे एक दम सॉलिड कर देगी | वैसे भी 1 घण्टा बिना गियर वाली साइकिल चलना गियर वाली साइकिल को 3 घण्टे चलाने के बराबर है |

अगर आप मैदानी इलाके में रहते हैं जहाँ चढाई-उतराई ज्यादा नहीं है तो बिना गियर वाली साइकिल एक बेहतर विकल्प है | हाँ अगर हिमालय में साइकिल चलाने का इरादा हो तो गियर वाली ही ले जाएं |

अच्छा, बच्चपन में हमने जो साइकिल चलायी थी उसमें गियर नहीं थे | मतलब हमारी ट्रेनिंग बिना गियर वाली साइकिल पर हुई है फिर भेड़-चाल में पड़ कर गियर वाली साइकिल ले ली अब गियर बदलने भी नहीं आ रहे, कुछ देर माथा मारने के बाद इंसान बोलता है जिस भी गियर में है : "अब चलण दे" | सर्विस के टाइम लंबा चौड़ा बिल हाथ में देख कर बन्दा सोचता है बेकार का सफेद हाथी पाल लिया ! तभी बोल रहा हूँ जब तक ख़ास ज़रूरत न हो तब तक देसी ही बने रहो इससे आपका पैसा, समय तो बचेगा ही बचेगा साथ में सेहत बनेगी सो अलग |


प्र० 1. भाई ज़बरदस्त साइकिल है, कितने की ली ?
प्र० 2. भाई बड़ा थका हुआ लग रहा है कहाँ से आ रहा है ?

पहला प्रश्न आपसे तब पूछा जाएगा जब आप गियर वाली साइकिल लेकर कहीं जा रहे हों और दूसरा तब जब आप कोई देसी साइकिल लेकर कहीं दूर निकल जाओ | मतलब साइकिल अगर गियर वाली है तो जीत साइकिल की और अगर देसी है तो जीत सवार की, जी हाँ यही मानसिकता है लोगों की | पता नहीं लोगों को क्यों लगता है कि गियर वाली साइकिल शायद अपने आप चलती है, इसमें तो ज़ोर ही नहीं लगता | खैर मेरी राय तो यह है कि दोनों स्तिथियों में सम्मान सवार का ही होना चाहिए क्योंकि चाहे गियर वाली हो या बिना गियर वाली ज़ोर तो शरीर का ही लगता है ! हाँ अगर तुलना कि जाए तो बिना गियर वाली साइकिल को चलना गियर वाली साइकिल चलाने के मुकाबले मुश्किल होता है अगर रास्ता ख़राब और चढ़ाई वाला हो, मैदानी इलाकों में तो सब बराबर है | |


बिना गियर वाली साइकिल कि सबसे अच्छी बात यह है कि यह साधारण है | चैन उतर जाए खुद चढ़ा सकते हैं | ख़राब रास्तों पर बिना आवाज़ किए चलती है, जिससे यह एहसास रहता है कि सब ठीक है | वहीँ दूसरी ओर गियर वाली साइकिल कितनी भी महँगी क्यों न हो खड्डों में चैन कि ऐसी आवाज़ आती है कि लगता है अब गई - अब गई | खैर एक बात यही भी है कि बिना गियर वाली साइकिल में आपकी सोच पहले से ही सेट होती है कि बस ज़ोर लगाना है उसके इलावा और कोई विकल्प नहीं है वहीँ गियर वाली में अक्सर लोग कन्फ्यूजिया जाते हैं कि क्या करें-क्या करें ?

बिना गियर वाली साइकिल के चोरी होने कि आशंका गियर वाली से तो बहुत कम है | आप निश्चिन्त होकर कहीं भी लगा कर घूम फिर सकते हैं | मैं कहना यह चाहता हूँ कि अगर आपके पास महँगी गियर वाली साइकिल है तो आपको अपने से ज्यादा साइकिल की फ़िक्र होगी और अगर बिना गियर वाली सस्ती साइकिल है तो आप यही कहोगे की साइकिल जाए भाड़ में अपना पहले देखो !


व्यक्तिगत राय मेरी यही है कि देखा-देखी छोड़ो, दिखावा छोड़ो और अच्छी सी देसी बिना गियर वाली साइकिल ले लो फायदे में रहोगे और अगर इन्टरनेट की खाक छानते रहे तो आपके हाथ में लंबे-चौड़े बिल ही आएंगे | एक दो बड़े टूर में सारा पैसा वसूल बशर्ते आप हिमालय कि ऊंचाइयां नापने का इरादा न रखते हों | बिना गियर वाली साइकिल से आपका अपने ऊपर विश्वास बनेगा न की साइकिल के ऊपर और टाँगे जो मज़बूत होंगी सो अलग, फिर चाहे ट्रैकिंग करो या दौड़ लगाओ स्टैमिना बढ़ा ही रहेगा |

साइकिल चलाओ 
स्वस्थ बनो 
स्वस्थ बनाओ 

Tuesday 20 December 2016

चण्डीगढ़ के आस-पास साइकिलिंग के लिए 5 बेहतरीन स्थान

आज़ादी मिली 
देश बंटा
लाहौर मिला पाकिस्तान को 
अब नयी राजधानी 
चाहिए थी पंजाब को 

चाचा नेहरू का सपना
आधुनिक नगर हो अपना 
जो तोड़ दे ग़ुलामी की ज़ंज़ीर 
लिखे नवभारत की उज्वल तकदीर 

ली कार्बूजियर की रूप-रेखा
वो खुले हाथ का चिन्ह देखा 
जो है देने को तत्पर 
कोई सामाजिक बुराई 
हावी न हो इस पर 
और ये तो चण्डी का गढ़ है 
हाँ भाई 
चण्डीगढ़ है

चण्डीगढ़ में रहते हैं और आपके पास साइकिल है तो इससे अधिक एक घुमंतू प्राणी को और क्या चाहिए ? चौड़ी सड़कें हैं, हरियाली है और है स्वतंत्र जिजीविषा ! चलिए फिर भी अगर आप चण्डीगढ़ में साइकिल ट्रैक पर साइकिल चला-चला के और पार्कों के चक्कर लगा-लगा के ऊब गए हों और आपको अपनी फिटनेस पर शक नहीं है तो ये स्थान आप ही के लिए हैं :

1. पड़छ डैम  

चण्डीगढ़ से 15 km दूर है और शहर की भागदौड़ से निकलने के लिए अच्छा शाँत स्थान है | चण्डीगढ़ से आधे घण्टे में यहाँ पहुंचा जा सकता है | अगर डैम में पानी कम हो तो थोड़ी ऑफरोडिंग करके दूसरी तरफ भी पहुँचा जा सकता है | 



2. जैंती डैम 

चण्डीगढ़ से 12 km दूर है | प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर शाँत एवं एकांत भरा स्थान है | यहाँ सूर्योदय का नज़ारा देखते ही बनता है | अगर आपकी किस्मत अच्छी हुई तो यहाँ नाचता हुआ मोर भी दिखाई दे सकता है | 



आप दोनों डैम एक साथ भी देख सकते हैं, पहले जैंती डैम जाईये फिर वहां से पड़छ डैम और फिर नयागांव होते हुए वापिस चण्डीगढ़ आ सकते हैं |

3. सिसवां डैम 

चण्डीगढ़ से 20 km दूर है | आखिर में थोड़ी चढ़ाई है जो सफ़र का अंत अच्छे अंदाज़ में करेगी | लंबी यात्रा की ट्रेनिंग शुरू करने के लिए एक अच्छी जगह है | 



4. सुखना परिक्रमा

चण्डीगढ़ गोल्फ कोर्स से शुरू कीजिए फिर सुखना झील की पिछली तरफ (किशनगढ़) वाले रास्ते से सुकेतडी होते हुए ख़ुडा अलीशेर से नयागांव (मैप देखें) और फिर वापिस चण्डीगढ़; ये परिक्रमा पथ कुल 17 km लंबा है | ये रास्ता आपको शहर से गांव में, फिर पहाड़ों में और आखिर में वापिस शहर में ले आयेगा | 






5. चण्डीगढ़-नयागांव-पिंजोर-पंचकुला-चण्डीगढ़ परिक्रमा 

कृप्या रोज़ साइकिल चलाने वाले या फिट लोग ही इस रास्ते पे जाएं | चण्डीगढ़ से नयागांव आप शहर में साइकिल चलाएंगे | नयागांव से करोरां रोड़ शुरुआत में आपको गांव का एहसास दिलाएगा उसके आगे पटियाला की राव (नदी) के रेत पर आप ऑफरोडिंग करेंगे | करोरां रोड़ के आखिर में आपको तीखी चढ़ाई मिलेगी फिर ये रास्ता नालागढ़-बद्दी हाईवे से मिल जाएगा | वहां से दाहिने हाथ पिंजोर की तरफ हो जाईये | पिंजोर पहुँच कर सड़क किनारे गन्ने का जूस पीजिये थकान मिटाइये और फिर हिमालयन एक्सप्रेसवे से चण्डीगढ़ की तरफ हो जाएं | यादवेंद्रा गार्डन से थोड़ा आगे कौशल्या डैम आएगा वहां आराम करिये और फिर वापिस चण्डीगढ़ आ जाईये | ये रास्ता कुल 50 km लंबा है, आपकी साइकिलिंग की उस्तादी का हर दांव पूरी तरह परखेगा |






ये सभी रास्ते आपका अच्छा इम्तिहान लेंगे इसलिए अपने साथ पर्याप्त पानी ले जाना न भूलें | सभी स्थान फोटोग्राफी के लिए शानदार हैं, कैमरा जरूर ले जाएं | 

मंज़िल क्या है ? 
चंद लम्हों का ठहराव 
मेहनत का फल
या कोई अदभुत नज़ारा 
देखो, समझो और जानो 
आखिर है क्या ये खेल सारा ?

मंज़िल क्या है ?
पथिक कि थकान
सम्मान का गुमान
झूठा अभिमान
या जोश की उड़ान
नाकामयाबी का कथन 
कि लौट के आऊंगा मैं दोबारा 
आखिर है क्या ये खेल सारा ? 

मंज़िल क्या है ?
एक अनुभूती ख़ुशी की
शुरुआत वापसी की
चलो चलें अब अपने घर यारा 
आखिर है क्या ये खेल सारा ?