Thursday 13 October 2016

श्री चमकौर साहिब यात्रा भाग-2

हमरी करो हाथ दे रक्षा  | |
पूर्ण होए चित की इच्छा  | |
तव चरणं मन रहे हमारा  | |
अपना जान करो प्रतिपारा  | |
हमरे दुष्ट सभे तुम घावो  | |
आप हाथ दे मोहे बचाओ  | |
सुखी बसे मोरो परिवारा  | |
सेवक सिख सभई करतारा  | |
(बिनती चौपाई, श्री गुरु गोबिंद सिंह )


सन 1705
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा जी (पाँच प्यारों)  से पूछा औरंगज़ेब का अंत कैसे किया जाए ? तीर से या कलम से ?
खालसा जी ने गुरुगोबिंद सिंह जी से कहा :
गुरुदेव हमने बुराई के खिलाफ अपने शस्त्रों से बहुत लड़ाईयाँ लड़ीं हैं, लेकिन इस लड़ाई का अंत आप कलम से करें |

चूँ कार अज़ हमह हीलत-ए दर गुज़शत
हलाल असत बुरदन ब-शमशीर दसत
(ज़फरनामा)
(जब किसी मुश्किल को हल करने की तमाम विधियां बिफल हो जाएं फिर हाथ में तलवार उठाना सही है)

फिर गुरुगोबिंद सिंह जी ने ज़फरनामा (विजय पत्र) लिखा | ज़फरनामा औरंगजेब को गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा फारसी में लिखा गया एक पत्र है | इस पत्र में परमेश्वर की महिमा से लेकर मुग़लों के विश्वासघातों, चमकौर की लड़ाई में मुग़लों की करारी हार और औरंगज़ेब को मिलने आने का काव्यात्मक अंदाज़ में ज़िक्र है | कहते हैं जब सिंघों ने यह पत्र औरंगज़ेब को बाबुलंद पढ़ के सुनाया तो वह कांम्प उठा और उसके बाद एक साल के भीतर ही दुनिया से रुख़सत हो गया |

बस्स एक हिन्द में तीर्थ है यातरा के लिये ।
कटाए बाप ने बच्चे जहां ख़ुदा के लिये ।
( गंज-ए-शहीदां- 117, अल्लाह यार ख़ां जोगी )

श्री चमकौर साहिब केवल एक गुरुद्वारा नहीं है | इस पवित्र स्थान पर मुख्यतः छह गुरुद्वारे हैं और इस पूरे क्षेत्र को श्री चमकौर साहिब के नाम से संबोधित किया जाता है | छह मुख्य गुरुद्वारे हैं: 
गुरुद्वारा डमडमा साहिब 
गुरुद्वारा गढ़ी साहिब 
गुरुद्वारा कतलगढ़ साहिब
गुरुद्वारा रंजीत गढ़ साहिब 
गुरुद्वारा शहीद बुर्ज भाई जीवन सिंह 
गुरुद्वारा ताड़ी साहिब  


गुरुद्वारा श्री कतलगढ़ साहिब देखने के बाद मैं गुरुद्वारा श्री गढ़ी साहिब देखने पहुँचा, जिनका नाम कच्चे किले (कच्ची गढ़ी) पर रखा गया है | बहुत ही भव्य गुरुद्वारा है | यहाँ से आप चमकौर साहिब के आस-पास के पूरे इलाके को देख सकते हैं | इसी स्थान पर वह कच्ची गढ़ी (किला) था जिसपे चढ़ कर गुरु गोबिंद सिंह जी लड़ाई देख रहे थे और मुग़ल सेना पर तीरों की बरसात कर रहे थे | उनके तीर कई हज़ार मुग़लों को चीरते हुए आर-पार हो गए |


लगभग 2 बजे मैंने अपनी दोनों बोतलों में पानी भरा और वापिस चलने को तैयार हो गया | श्री चमकौर साहिब की पवित्र धरती को प्रणाम कर मैं साइकिल पर सवार हो गया | वापसी का सफ़र मुश्किल होने वाला है यह मैं जानता था |
हे प्रभु! आज क्या खूब पाठ सिखाया तुमने
भर दी है नवीन ऊर्जा मुझमें
थकान का एहसास है
लेकिन मैं उसे महसूस नहीं कर रहा
धीरे-धीरे ही सही
मंज़िल की ओर बढ़ रहा
धूप की तपिश भी आज मीठी हो गई
साहस, शक्ति और वीरता से जो भेंट हो गई
है धर्म, बलिदान, त्याग और पूर्ण समर्पण
और ऐसे गुरुओं की महिमा भी
जिन्होंने किया सम्पूर्ण वंश अर्पण
आज पंजाब की जवानी फिर नशे में कैसे खो गई ?
धूप की तपिश भी आज मीठी हो गई
साहस, शक्ति और वीरता से जो भेंट हो गई.....


श्री चमकौर साहिब से रोपड़ पहुँचा | सिख इतिहास की वीरगाथाओं को समझने में इतना मशगूल हो गया था कि गुरुद्वारे में लंगर छकना भी भूल गया | अब ज़ोरों की भूख लग रही थी | रोपड़ से कुराली की तरफ बढ़ते हुए एक केले के ठेले पर रुका | आधा दर्जन केले खाने के बाद भूख शांत हुई |


कुराली पहुँचते-पहुँचते पसीने में तर हो चुका था | कुराली से चण्डीगढ़ (सिसवां रोड़) की तरफ़ हो लिया | कुछ दूर चलने के बाद थकान और धूप से बेहाल मैं, ये पंक्तियाँ गुनगुना रहा था :
सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जब से शरण तेरी आया
मेरे राम !
खैर इस रास्ते पे छाया नहीं है | बहुत दूर तक छाया ढूंढता रहा नहीं मिली | आखिर में एक बंद पड़ी पानी की मोटर दिखी वहां एक आम का पेड़ था जिसकी छाया देख मैं खुद को रोक नहीं पाया | साइकिल टिका के मैं तो ज़मीन पे ही लेट गया | करीब आधा घण्टा सोने के बाद होश आया | सारा पानी पी लेने के बाद फिर से चलने लगा, चण्डीगढ़ की ओर |


ये जो न्यू चण्डीगढ़ (कुराली चण्डीगढ़ रोड़ और मुल्लांपुर के आस-पास) वाला इलाका है, ये जैसे दुबई की नक़ल बनाई गई है | सबसे पहले वो दुबई वाली बिल्डिंग की नक़ल आपको दूर से ही दिख जाएगी | फिर चकाचक चौड़ी सड़कें, फ्लाईओवर और डिज़ाइनर स्ट्रीट लाइट्स |



हद तो तब हो जाती है जब सड़क के किनारे लगाए गए खजूर के पेड़ दिखाई देते हैं | अरे भाईसाहब हमारी नहीं तो संत कबीर जी की ही सुन लेते :
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ||


लगभग 4:30 बजे मैं हॉस्टल पहुँचा | आज का दिन बहुत ज्ञानवर्धक रहा | सिख वीरता को जानने के बाद मैं सोचता हूँ कि कैसे पंजाब नशे में डूब गया ?
जहां धर्म, बुद्धि, वीरता और शारीरिक बल की इतनी ऐतिहासिक मिसालें हैं वहां के युवा कैसे नशे कि ओर चले गए !
शायद यही सवाल इन बाबा जी के ज़ेहन में भी चल रहा है.........


यात्रा विवरण
दूरी
चण्डीगढ़ (पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, सेक्टर-12) से कुराली- 26 km
कुराली से रोपड़- 16 km
रोपड़ से चमकौर साहिब- 14 km
कुल दूरी = 56 km
आना-जाना = 112 km

कुल यात्रा खर्च

आधा दर्जन केले - 30 रुपए

इस यात्रा का पिछला भाग यहाँ पढ़ें




अगर आप भाग्यशाली हों तो श्री चमकौर साहिब में आपको पारंपरिक साज़ों पर चमकौर की लड़ाई का वर्णन भी सुनने को मिल सकता है :

ओ सिंह किले चों निकलया, फिर बड़या विच मैदान
ओह्दी चण्डी लिशकां मारदी, मारदी, ज्यों बिजली विच असमान
पये वैरी थर-थर कम्बदे, पज्जे पेडां वांगू जाण
ज्यों शेर पुख्खे विच जंगली, जंगली, पये जिदी जान बछाण

ओ वार चलावे तेग दा, ज्यों तारा टूटे असमान
ओहना वाड़ी पायी वेरीयाँ, वेरीयाँ, ज्यों मक्की कट्टे किरसान
पइयाँ मुग़लां ताईं पजदीयाँ, जुद्ध मच्या सी घमसाण
फिर कलगीधर दे लाड़ले, लाड़ले, वद-वद के तीर चलाण

कई नेज़े, बरछे चलदे, सिंह लड़दे ला के तान
जीयोंदे सिंह कदे न हारदे, हारदे, चाहे निकल जाण प्राण
फिर कलगीधर जी वेख के, थावे-थावे तीर चलाण
जो लंघ के कई हज़ार चों, हज़ार चों, सुक्के आर-पार हो जाण

सिंह अंत शहीदी पा गया, जिस छडया नई मैदान
पंज सिंह जो उसदे नाल सी, नाल सी, हो गए हस-हस के कुर्बान
फिर छड़ जयकारा गुरां ने, कम्बण ला ता सी असमान
सुन छोटा पुत्तर आ गया, आ गया, यूँ करदा आप बयान

मैं वेख शहीदी वीर दी, हूँण करनी नई है काण
मैनु आज्ञा बख्शो गुरु जी, पिता जी, चमकावां सीखी शान
ऐ कौतक दसवें गुरां दा, ज़रा तक्को नाल ध्यान
जो पुत धर्म तों वारदे, उच्ची करण धर्म दी शान

रेह्न्दे पंथ वसे मैं उजडाँ, जावां लीरो-लीर कराण
वारा जागो वाले गा के गुरु संगतां तांहि सुणांण

रेह्न्दे पंथ वसे मैं उजडाँ, जावां लीरो-लीर कराण
वारा जागो वाले गा के गुरु संगतां तांहि सुणांण

इस यात्रा का पिछला भाग यहाँ पढ़ें

     

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