Wednesday 27 July 2016

नीलकण्ठ महादेव लाहौल यात्रा भाग-1 (चंडीगढ़ से लाहौल)

गुरूजी: लाहौल स्पीति चल रहे हैं  |
मैं: जी ठीक है आ जाऊँगा |
गुरूजी: कल शाम तक मण्डी पहुँच जाना |
16 जुलाई की शाम को बस इतनी ही बात हुई और मैं 17 जुलाई की सुबह 9 बजे की बस में चंडीगढ़ से मण्डी के लिए रवाना हो गया | झोला तो 5 दिन पहले ही पैक कर लिया था और चंडीगढ़ से गुरूजी द्वारा निर्देशित टेंट भी खरीद लिया था | चंडीगढ़ से मण्डी पहुँचने में 6 घंटे लग गए |
मण्डी बस स्टैंड पे गुरु जी पहले से ही इंतजार कर रहे थे | घर पहुँच कर सारा सामान व्यवस्थित तरीके से पैक करने के बाद हमारे पास दो बैग थे जिनमें एक टेंट, दो स्लीपिंग बैग, कपडे, खाने पीने का सामान इत्यादि था | कुल वजन करीब 30 Kg तक का होगा |
मण्डी जैसे ऐतिहासिक शहर के तो क्या कहने | मांडव ऋषि जी के नाम पर पड़ा नाम मांडव नगरी हो या काशी की तरह नदी(व्यास) के किनारे बसे होने और धार्मीक स्थल एवं मंदिरों के होने से पड़ा नाम छोटी काशी | कुछ प्रमुख मंदिर जैसे कि: भूत नाथ मंदिर, त्रिलोकी नाथ मन्दिर, राजा माधव मंदिर, श्याम काली मंदिर, भीम काली मंदिर, पंचवक्त्र महादेव, अर्धनारिश्वर मंदिर इस स्थान के धार्मिक पहलू को उजागर करतें हैं | मण्डी शहर सिल्क रूट के जमाने से आज तक अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोय हुए है |
शाम को सुहाना मौसम, हल्की हल्की फुहारें और हरियाली से भरपूर घण्टाघर के नीचे बैठ के लेमन टी की चुस्की के साथ सामने प्रकृति के अदभुत नज़ारों का आनंद तन, मन और आत्मा सब प्रसन कर देता है |
खैर मण्डी में अधिक समय रुकना न हुआ | 17 कि ही रात को करीब 11:30 बजे हम मण्डी बस स्टैंड पे पहुँच गए | बस स्टैंड पर JEONET का फ्री WIFI मिला और मेरे लिए तो ये DEVELOPMENT का जीता जागता सबूत था |
हमें HRTC की बस का इंतज़ार था; जो कि धर्मशाला से चल कर मण्डी और मण्डी से केलांग (त्रिलोकीनाथ) जाने वाली थी | बस में होने वाली भीड़ से गुरूजी मुझे पहले ही अवगत करवा चुके थे | बस के आते ही मैं बस पे टूट पड़ा और अपने लिए और गुरूजी के लिए सीट रिज़र्व कर ली; हालाँकि बस में बस दो ही सीट खली थीं |
सुबह लगभग 3:30 बजे बस मनाली पहुंची | मनाली में बस में नेपाल से आये बहुत से प्रवासी मज़दूर चड़े, जो की लाहौल स्पीति में मज़दूरी और खेती का काम करने के लिए जा रहे थे | इतनी ठण्ड में सिर्फ टी शर्ट जीन्स पैंट और Relaxo की चप्पल पहने वे लोग बस में नीचे फर्श पे ही बैठ गए |
मेहनत की खुशबू से भरपूर उनके शरीर बस में बैठे यात्रियों के नाक के बाल जला रहे थे | मेरे साथ बैठे यात्री ने तो यह कह कर खिड़की खोल दी की ठंडी हवा सह लूंगा मगर यह खुशबू बर्दाश्त के बाहर है | खैर बस चली और कुछ देर में सबके नाक अभ्यस्त हो गए |
रोहतांग पास पार करते समय सूर्य उदय हो रहा था और वो दृश्य बहुत ही रमणीय था |
कोकसर पहुँच कर बस रुकी और हम फिर एक ढाबे पे जा कर लेमन टी का मज़ा लेने लगे | रोहतांग के इस ओर मानसून नहीं पहुँचता ओर बारिश भी बहुत कम होती है, होती है तो अक्टूबर नवम्बर से बर्फबारी जिसके कारण मई जून तक रोहतांग पास बंद रहता है | रोहतांग पास के एक तरफ कुल्लू जिला है और दूसरी तरफ लाहौल स्पीति |
लाहौल और स्पीति दो अलग अलग जगाहें हैं | कोकसर पुल पार करके टी पॉइंट आता है, दाहिना रास्ता हरेभरे लाहौल की ओर और बाएँ तरफ का रास्ता स्पीति के ठंडे रेगिस्तान की ओर | हम लाहौल की और चल पड़े |
गुरुजी रिसोर्सफुल पर्सन हैं | उनके एक मित्र श्रीमान नवीन जी के घर पर रहने खाने का प्रबंध वो पहले ही कर चुके थे; मुश्किल थी तो उनके गांव सुमनम तक पहुंचना|
तांदी पुल पे हम दोनों बस से उतर गए| सुबह के 9 बज रहे थे | तांदी वही स्थान है जहां चन्द्रा नदी भागा नदी से मिलती है और चंद्रभागा बन जाती है | यही चन्द्रभागा जम्मूकश्मीर में जा के चेनाब बन जाती है | गुरूजी संगम स्थल की मिट्टी लेने के लिए पुल से नीचे उतर गए और अपनी पर्सनल कलेक्शन के लिए सैंपल जमा कर लिया |


10 बजे तक गाड़ी का इंतज़ार करने के बाद हमने पैदल चलने का निश्चय किया |1:30 घंटे में 3 km पहाड़ चढ़ने के बाद हम कहीं हमारे होस्ट श्रीमान नवीन जी के घर सुमनम पहुंचे |
आप सभी ने पहाड़ी पर बसे हुए एक ऐसे घर की कल्पना की होगी जहाँ ठंडी हवाएँ चलती हों, आंगन में धूप और आस पास हरियाली, क्यारी में खिले फूल और बागों में पेड़ों पे लगे हरे से लाल होते सेब, दोमंज़िला घर की ऊपर वाली खिड़की से दिखते ऊपर ऊँचे पहाड़, झरने और नीचे सुन्दर सा गांव; उसी खिड़की के सामने बैठ कर चाय की चुस्की के साथ मनपसंद किताब पढ़ने का मज़ा; यह सब मात्र कल्पना नहीं हकीकत है जी हाँ आर्किटेक्ट नवीन जी के घर पर आपको यह सारी सुविधाएं निशुल्क मिल जाएँगी बस आपके पास भी कोई  "रिसोर्सफुल पर्सन"  होना चाहिए   |


अब आपका परिचय गुरूजी के कॉलेज के दोस्त नवीन जी से करवातें हैं | बन्दा एक दम गाउ है | शांत और एकाग्र, बैंगलोर में काम करते हुए भी लाहौल को नहीं भूले हैं | नाजाने कैसे हालातों का सामना करते हुए इन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की होगी | लाहौल जैसे दूरदराज क्षेत्र से निकल कर बैंगलोर में करियर की ऊंचाइयों को छूना बहुत ही सराहना और साहस का काम है |
खैर 18 जुलाई को नवीन जी के गांव सुमनम पहुँचने के बाद हमने रेस्ट ही की, उनके घर की खिड़की में खड़ा हो के पहाड़ों को अपनी कामचलाऊ दूरबीन से देखते हुए, प्रकृति के अदभुत सौन्दर्य को निहारते हुए |


2 comments:

  1. वाह... शानदार लिखा है, आशा है भविष्य में फोटोज की कमी महसुस नहीं होगी।

    ReplyDelete