Saturday 2 September 2017

किन्नर कैलाश यात्रा

मानसरोवर से चली वो
छिपकिला से भारत आयी
खाब में मिली स्पीति जिससे
बसपा कड़छम में मिलने आयी

साँप सी बलखाती
हुँकार भी कभी करती है उसी सी
पहाड़ों की मज़बूती आज़माती
काटती है ये आसानी से उन्हें भी
और ये सुन्दर किन्नर प्रदेश
दो भागों में बाँटती है इसे भी


ठीक कहा था चन्दन ने
ये नदी अब महज़ नदी न रही
जलीं हैं इसके किनारे तीन लाशें
ये नदी अब महज़ नदी न रही
इस्पे बने हैं चार बाँध
ये नदी अब महज़ नदी न रही

क्या वेग रहा होगा
जो अब बाँध दिया गया है
क्या तेज रहा होगा
जो अब बाँट दिया गया है
लालच की प्यास ये
कब तक बुझा पाएगी
जिस दिन इसे गुस्सा आएगा
सब खा जाएगी


ये किन्नौर प्रदेश देख तू
देख नेगी का उल्लास
मधुर कंठ सिर पर ठेपंग
रंग बदलता किन्नर कैलाश
बौद्ध-हिन्दू धर्म मिलाप

ऊँचें पहाड़ों में छिपी हुईं
सेब चिलग़ोज़ों की घाटियाँ
सतलुज की काटी हुईं
ये गहरी घाटियाँ
घाटियाँ ये बाणासुर की
जो बलि का पुत्र था हुआ
जिसका गन्धर्व विवाह
कफौर की हिरमा से था हुआ
तत्पश्चात गोरबोरिंग गुफा में
अठाहरां बच्चों का जन्म हुआ
सबसे बड़ी हुई चंडिका
जिसने रोपा में निवास किया
और किन्नर प्रदेश अट्ठारां भागों में
सबमें बाँटा गया


देख यही वो इंद्रकील पर्वत
जहां शंकर-अर्जुन युद्ध हुआ
वीर अर्जुन को जहाँ
पाशुपातास्त्र प्राप्त हुआ
और इसी पर्वत की छत्रछाया में
अनिरुद्ध का ऊषा से विवाह हुआ


ये पर्वत किन्नर कैलाश
आता यहाँ वही
जिसको उसकी तलाश
जो ढूँढ़ता फिरता हो
अंत: प्रकाश
ये कैलाश हैं स्वयं
शिव सन्निकाश


पिछली से पिछली शाम चंडीगढ़ से चले हैं । पिछली सुबह अपने तीसरे साथी से मिले रिकांगपिओ में । कपिल जी, आप कुमारसैन से हैं और एक बहुत अनुभवी ट्रेकर हैं । मात्र 23 साल की उम्र में आप गज़ब का धीरज रखते हैं । अभी आप हमारी फ़िक्र में नीचे गणेश पार्क में टेंट के चक्कर काट रहे होंगे और बार-बार शाम के सूरज में सुनहरी होते पहाड़ों को निहारते होंगे । आपके साथी, यानी की हम आपसे, मेरे अंदाज़े से लगभग 3 घंटे बाद पहुंचे लेकिन हमारे धीर्ग विलम्ब पर पहुँचने पर भी आपने पंद्रह मिनट बोल कर बात को कितनी शालीनता से टाल दिया और माहौल की गर्मजोशी को बनाए रखने के लिए चाय और मैग्गी भी मंगवा ली । इससे आपके संस्कार, चरित्र, आदर्श और जीवन की समझ का पता चलता है ।


खैर मैं निढ़ाल हो चुका था, मैं सीधा टेंट में घुस कर स्लीपिंग बैग में दुबक गया । सिर पर हाथ रखा तो हल्का बुखार लगा । आँखें बंद कीं तो पलकें जल रहीं हैं, मानो थोड़ी देर पहले सोखी हुई सूर्य की ऊष्मा उगल रहीं हों और इस समय मैं जो कुछ भी सोच रहा हूँ वो मैं लिखता चला जा रहा हूँ.....
लेटा हुआ मैं सोच रहा हूँ, सारे घटनाक्रम के बारे में । चंडीगढ़ से रिकांगपिओ शाम 5:50 की बस से चले थे 22 अगस्त को । 23 अगस्त की सुबह रिकांगपिओ पहुंचे और कपिल जी से मिले । फिर वापिस रिकांगपिओ से पोआरी आए । पोआरी सतलुज के एक तरफ है और तंगलिंग दूसरी तरफ़ । हमें तंगलिंग जाना है, वहीँ से यात्रा शुरू होती है । कपिल जी ने थोड़ा होंसला बढ़ाया तो हम झूला पुल से सतलुज पार करने को तैयार हुए । वैसे असली पुल और आगे शोंगटोंग में है । झूला पुल लगभग 100 मीटर लंबा है । पुल के ऊपर झूलते हुए नीचे सतलुज बैतरणी की तरह प्रतीत होती है । दूसरी तरफ़ सीढ़ियां हैं । यहीं से यात्रा शुरू होती है । हम लेट हो चुके हैं । सुबह लगभग साढ़े दस का समय होगा और सूरज प्रचण्ड हो चुका है । थोड़ी ही चढाई चढ़ी थी कि गला सूख गया । मैं और गुरूजी साथ-साथ चल रहे हैं, धीरे-धीरे । एक मोड़ पर दोनों बैठ जाते हैं । पानी कि बोतल में ORS मिलाया जाता है । इसको पीकर थोड़ी राहत मिलती है । आगे पहले ढाबे पर हम फिर से रेस्ट करते हैं । इसके बाद एक नाला आता है ।  यहाँ पानी भरा जाता है । आगे पानी नहीं है और यहाँ दोपहर सिर जलाने वाली । आप सनस्क्रीन लेकर आएं यहाँ ।


नाले के दूसरी तरफ़ से चढ़ते हुए रेकांगपिओ और कल्पा का शानदार नज़ारा दिखता है । बलखाती सतलुज का अपना ही आकर्षण है । अब जंगल है और रास्ता कच्चा । कभी कभार मैं चढाई पर फिसल जाता हूँ । मिट्टी ढीली और भुरभुरी है । चढाई वाकई में काफी तीखी है ।  कुछ कदम चलने के बाद ही रेस्ट लेना पड़ रहा है और मैं और गुरूजी पिछड़ते जा रहे हैं, अपने तीसरे साथी से जो पहाड़ों पर सरपट दौड़ता ही चला जा रहा है । कपिल जी मुझे अपनी छड़ी दे गए हैं । मैं उनका आभारी हूँ ।


काफ़ी मशक्कत के बाद हम गणेश पार्क पहुँचे । शाम के साढ़े तीन बज रहे होंगें शायद । कपिल जी ढाबे में पहले ही पहुँच चुके हैं । हमारे आने तक आप सो चुके थे । आज का डेरा यहीं है । अब आगे गुफ़ा तक पहुँचने कि हिम्मत नहीं है ।


कुछ देर सुस्ता लेने के बाद इधर-उधर घूम-फिर रहे हैं । शाम बहुत हसीं है और सामने कल्पा और पियो का नज़ारा जिसमें सतलुज का अलंकार विशेष शोभा पा रहा है । कुछ चित्र खींचे जा रहे हैं और कुछ किस्से साँझा कर रहे हैं । रात को खाना खाने के बाद हम टेंट में आ गए हैं । ये टेंट खुला है । ठंडी हवा मज़े से आ जा रही है । सुबह 3 बजे का अलार्म लगा लिया है, diamox भी खा ली है । बाकि जो होगा सुबह देखा जाएगा ।

सुबह जल्दी ही निकल पड़े । तीन बजे घुप अँधेरे में । मेरे पास टोर्च नहीं है । मैं बीच में चल रहा हूँ । गुरूजी ताना मार रहे हैं - जला साले मोमबत्ती!!!! टोर्च रखने को बोले थे, मैं मोमबत्ती ले आया । खैर अब मोबाइल की फ्लैशलाइट जला ली है । आगे उतराई है और ओस भी पड़ रही है ।  रास्ता संकरा ही होता चला जा रहा है । आगे झरने की आवाज़ आ रही है । यहाँ ऊपर की तरफ़ एक छोटी गुफ़ा है झरने से पहले । पिछली बार कपिल जी इसमें सोए थे, वो बता रहे हैं । आगे झरना है ।  यहाँ पानी भर रहे हैं । इसके आगे फिर से चढ़ाई है । थोड़ी दूरी पर ही ऊपर गुफ़ा है, इस गुफ़ा के और ऊपर बायीं ओर एक और गुफ़ा है ।  गुफ़ा से आगे पत्थर शुरू हो जाते हैं । शुरुआत में छोटे हैं और यकायक इनका साईज़ बढ़ता ही चला जाता है । पार्वती कुंड तक पहुँचते-पहुँचते हालत खराब हो चुकी है । दिन चढ़ चुका है । पार्वती कुण्ड में कच्छे पड़ें हैं भांति-भांति के । कोई आमूल माचो, कोई रूपा, कोई यंग इंडिया, उधर चट्टान के नीचे जॉकी भी है । ये मान्यता है कि धार्मिक कुण्ड में स्नान करने के बाद वो वस्त्र दोबारा नहीं पहनने हैं और लोग यहीं इनका परित्याग कर गए हैं । ट्रक भर कच्छे हैं यहाँ । पार्वती कुण्ड पर काफ़ी देर रुके । भिगोये हुए चने खाये और काजू, बादाम, किशमिश का भोग लगाया ।


पार्वती कुण्ड से चल पड़े हैं । अब रास्ता बहुत कठिन है । सामने खड़ा पहाड़ है । हाथ-पाओं सबका इस्तेमाल हो रहा है । कुछ ढीले पत्थर भी हैं, सावधान रहें ।  मेरे सिर में दर्द शुरू हो गया है । साँस लेने में भी दिक्कत हो रही है । कपिल जी आगे हैं मैं उनके पीछे चढ़ने कि कोशिश कर रहा हूँ । लेकिन मुझे आराम ज्यादा देर करना पड़ रहा है । मैं फिर से गुरूजी के साथ चढ़ रहा हूँ धीरे-धीरे । आगे चट्टान के नीचे से पतली सुरंग है । बैग पहले ही आगे फेंक दिया है । इसके बीच से निकल रहे हैं । इसके बाद फिर चढाई है । अब चढ़ाई इतनी तीखी है कि नाक भी पहाड़ से रगड़ खा रही है । ऊपर किन्नर कैलाश के दर्शन हो रहे हैं । यहाँ से त्रिमुखी शिवलिंग स्पष्ट दिख रहा है । अब ज़्यादा दूर नहीं है । ऊपर से जयकारों कि आवाज़ आ रही है और ये आवाज़ कपिल जी कि है । वे पहुँच गए हैं । घिसटता हुआ मैं भी आखिर पहुँच ही गया । मेरे आने ही कि देर थी, बारिश शुरू हो गयी । नहीं-नहीं ये बारिश नहीं बर्फ है, बारिश कि बूँदें जम गयीं हैं । हवा भी बहुत तेज़ है यहाँ । कपिल जी निक्कर में ही चढ़ आये हैं । उनको आये आधा घंटा हो गया है । वो नीचे उतरने लगे हैं । मैंने और गुरूजी ने माथा टेका । अब हम भी नीचे उतरने लगे हैं । हम बस पांच मिनट ही ऊपर टिक पाए बारिश और हवा बहुत तेज़ है ।


नीचे उतरना और मुश्किल हो गया है । चट्टानें गीलीं हो चुकीं हैं । पाओं फिसल रहा है । नीचे गिरे तो सीधे ऊपर पहुँच गए समझो । टाँग भी टूट गयी तो भी मौत ही समझो, यहाँ से आपको कोई नहीं उठा कर ले जा सकता । यहाँ से तो लाश भी वापिस नहीं लेकर जाते, "अगर मिले तो", सावधान रहें । धीरे-धीरे हम पार्वती कुण्ड पहुँचे । यहाँ से गुफ़ा तक किसी तरह लटक-लटक के पहुँचे । गुफ़ा में रेस्ट करने के बाद नीचे झरने के पास रुके । यहाँ मैंने चार बोतल पानी गटक लिया है । मुझे ठण्ड लग चुकी है । आगे थोड़ी चढ़ाई है । हमारी हालत के लिए बहुत मुश्किल है । हम धीरे-धीरे रुकते-रुकाते चढ़ रहे हैं। ऊपर चढ़ कर धूप मिली । थोड़ा नीचे उतरे । घास का मखमली बिस्तर और धूप का गर्म कम्बल बिछा पड़ा है और थके हुए को क्या चाहिए । हम दोनों को लेटे हुए काफी देर हो गयी । गुरूजी एक तरफ़ सोए हैं । मेरे सिर में भी काफ़ी दर्द है । मेरा ये अनुभव प्रथम बार था । जनता हूँ ये AMS है । महसूस कर सकता हूँ अपने ही फेफड़ों की तकलीफ़ और सिर जैसे कोई हथौड़ों से पीट रहा हो । लेकिन मैं होश में हूँ या नहीं, ये सच है या सिर्फ मेरा वहम है ?


सामने गणेश पार्क में टेंट दिख रहा है । अभी कुछ देर घास पर लेट कर धूप का आनंद लिया जायेगा । इसके बाद हम नीचे उतरेंगे और रात गणेश पार्क में बिताएंगे । अगली सुबह हम रेकोंगपिओ पहुंचेंगे और इस तरह हमारी किन्नर कैलाश यात्रा सफल होगी । ये वही शाम है । अपने स्लीपिंग बैग में घुसा हुआ मैं यही सोच रहा हूँ कि मैं होश में हूँ या ये सब मेरा भ्रम है । 

होंसला है पस्त
आज हर शह शिकस्त
ढल चुका है सूरज नीचे
पहाड़ के ऊपर पड़े हुए हैं हम
बलहीन अर्द्धमूर्छा में
समेट रहे हैं 
बचा खुचा दम
ऐ रहनुमा !
कैसा ये आज तेरा सितम


सुना है पहाड़ों में 
बूटी चढ़ जाती है 
आज चढ़ गयी
सुना है पहाड़ों में 
भ्रम हो जाता है 
आज हो गया 
सुना है पहाड़ों में
प्रेत मण्डराते हैं
आज कुछ चिमड़ गए
और मेरे सिर पर चढ़ गए
फेफड़ों को चूस ले गए
ये भ्रम है या सच
शायद इस प्रेत को AMS कहते हैं 
आज सामना हो ही गया
खुशनसीब हूँ कि बच गया

एक गोली आती है DIAMOX की खास कर उनके लिए जो मैदानों से सीधी बस पकड़ पहाड़ों में आ जाते हैं ( मेरे जैसे ) और बिना अभ्यस्त हुए यात्रा/ट्रेक शुरू कर देते हैं । ये किसी भी मेडिकल स्टोर पर मिल जाएगी । 3500 मीटर से ऊपर के यात्रा/ट्रेक शुरू करने से 8-12 घंटे पहले एक गोली खा लीजिए । फिर ऊंचाई पर बिताई गयी हर रात को एक गोली लेते रहिए जब तक नीचे उतरना शुरू न कर दें । ये एक ही गोली है AMS से बचने के लिए । मैंने गोली भी खायी थी लेकिन फिर भी मैं इसकी चपेट में आ गया । जिस दिन इसे होना होगा हो जाएगी । बस लक्षण याद रखिए : पहले सिरदर्द होगा फिर साँस लेने में तकलीफ फिर अगर उल्टी हो गयी तो आपके पास बस आधा घंटा है । जल्दी से जल्दी नीचे उतारिए इससे पहले की आपके फेफड़ों में पानी भर जाए और दिमाग में सूजन आ जाए । अपना और अपने साथियों का ध्यान रखें । खास कर तब जब कोई घुटनों में सिर दे कर बैठ जाए ।

यात्रा दूरी सम्बन्धी जानकारी :

पोआरी : रिकांगपियो से 7 Km पहले आता है । आप यहाँ भी उतर सकते हैं, अगर आप पियो में जा कर चाय नाश्ता न करना चाहते हों । कंडक्टर को झूला पुल पर उतारने को बोल दें ।

इसके बाद तंगलिंग से गणेश पार्क = 8 Km
गणेश पार्क से गुफ़ा =  2 Km
गुफ़ा से पार्वती कुण्ड = 3 Km
पार्वती कुण्ड से किन्नर कैलाश = 1 Km

कुल दूरी = 14 Km

शिवलिंग 4800 m कि ऊंचाई पर है । इस यात्रा में यही सबसे ऊँचा स्थान है, जहाँ तक लोग जाते हैं ।

यात्रा खर्च :
चंडीगढ़ से रिकांगपिओ बस टिकट: 660 रुपए प्रतिव्यक्ति (हिम मणि बस )
गणेश पार्क में रहना और खाना : 350 रुपए प्रतिव्यक्ति (एक रात सोना और एक समय का खाना )


तुप्पा ने तपाई दित्ता 
टकीया ने रुआई दित्ता
बट्टे टिल्ले बट्टे बड-बड्डे
ओ भोले
अज तां तरयाया ही चढ़ाई दित्ता 
ऊपरां ही पुजाई दित्ता 
(धूप से तपा दिया 
चढाई ने रुला दिया
पत्थर ढीले पत्थर बहुत बड़े 
हे भोले 
मुझे प्यासा ही चढ़ा दिया
ऊपर ही पहुँचा दिया )


गुमान मान अभिमान 
आज सब तोड़ डाला
देख आज तेरा 
क्या-क्या निचोड़ डाला 
आया था तू बड़े शौक से
देख अब हालत अपनी
आज तुझे ख़ास एक
सबक सिखा डाला

मेरे रहनुमा मैं याद रखूँगा.........

Thursday 20 July 2017

श्रीखण्ड़ कैलाश महायात्रा

हाँजी साइकिल वाले भाई साहब
आज कल सन्नाटा छाया हुआ है ब्लॉग पर
न कोई नयी पोस्ट न फेसबुक न इंस्टा
कहाँ खो गए हो, कैसे चलेगा ऐसे
और लगाम लगाएगा कौन, इस दुनिया की होड़ पर

मेरे रहनुमा आज मेरे सारे बहाने ख़त्म हो गए
सोच रहा था करियर बना लूँ पहले
फिर करता मैं, पोस्ट ब्लॉग पर
अपने संघर्ष की

हाहाहा बेटा तू फस गया ना
इस भवसागर में

जी हाँजी अब तो फस ही गया समझो
और अब आप ही बाहर निकालो मुझे इस भव सागर से
कब तक गोते ही खाऊँगा मेरे रहनुमा
रेहम कर थोड़ा
कोई रास्ता बता
क्यों जले पर नमक रगड़ रहा है

अब तुझे यात्रा पर चले जाना चाहिए
सठिया गया है तू

पर रहनुमा किधर जाऊँ
कहाँ का प्रोग्राम बनाऊँ
ये सठियापना कैसे हटाऊँ
किस ठौर डेरा जमाऊँ

चल सुन फिर तू
एक कथा सुनाता हूँ
ज़ेहन की सारी धूल हटाता हूँ
ध्यान से सुन विस्तार में समझाता हूँ

भोलेनाथ के भोलेपन का लाभ जिसने था उठाया
वही भस्म हुआ स्वशक्ति से, भस्मासुर कहलाया

ये कथा पौराणिक समय की जब
असुर एक तपस्या को आया
कर घनघोर तप कहीं तब
भोलेनाथ को प्रसन्न कर पाया

भोलेनाथ प्रसन्न हुए, दिए दर्शन भक्त को
बोले वत्स माँगों वर तुम, जो भी तेरा मन हो
असुर बोला, वर भोलेनाथ मैं अमरता का लूँगा
कालचक्र से मुक्त हो जग में अमर नाम करूँगा

बोले भोलेनाथ वत्स वर अमरता का न दे सकता मैं
कुछ और माँगो वर, जिसे अभी पूरा कर सकता मैं
फिर दो वर मुझे
कि जिसके सिर पर हाथ मैं रखूँ वो भस्म हो जाए
तथास्तु बोल भोलेनाथ भक्त कि ये इच्छा पूरी कर पाए

असुर बुद्धि ठनकी सोचा
सबसे पहले भस्म भोलेनाथ को कर, पार्वती को हर लूँगा
ना रहेंगे भोलेनाथ, कोई और ऐसा वर फिर किससे लेगा
दौड़ा वो भोलेनाथ के पीछे उनको भस्म करने को
भोलेनाथ भी भागे प्राण रक्षा करने को

असुर के इस कृत्य को देख पार्वती माँ थीं रोई
नैन सरोवर बना उन आंसूओं से जहाँ ये घटना होई
शिव छिपे एक गुफा में भस्मासुर से बचने को
उधर धरा विष्णु जी ने मोहनी अवतार शिव रक्षा करने को

देख मोहिनी को, भस्मासुर मोहित था हुआ
सब भुला एक पल में, उसे पाने को आतुर हुआ
शर्त रखी मोहिनी ने कि नृत्य कला में मुझे रिझाओ
जैसा नृत्य करती हूँ मैं वैसा तुम भी करके दिखलाओ

मोहिनी के रूप रंग में था असुर छला गया
जैसे मोह-माया में ये संसार छला गया
जैसी मुद्रा में होती मोहनी सबकी नक़ल करता गया
जब भस्मासुर नृत्य में पूर्णरूप से रम था गया
रखा मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ और भस्मासुर भस्म था हुआ
ठीक वैसे ही अब तो इस कलयुग में भी सबका बेड़ा गर्क है हुआ

जब बोले देव शिव से, कैसे मोहिनी के हाथों भस्मासुर भस्म हुआ
आईये बाहर गुफा से आपके अनोखे वर का अंत हुआ
पर शिव भूले रास्ता गुफा से बाहर आने का
और शक्ति सवरूप प्रकट हुए एक चोटी पर
जो कहलाया श्रीखण्ड़, अदभुत तीर्थ एक इस ज़माने का


मेरे रहनुमा तुमने मेरे मुँह की बात छीन ली
जाना तो मैं भी बड़े टेम से चाहता था यहाँ
पर सुना है यात्रा लम्बी है बहुत
और चढाई का भी अंत ना है वहाँ
सुना है श्रीखण्ड़ में शरीर ही खंड-खंड हो जाता है
और इतनी ऊंचाई है कि साँस भी न आती वहाँ

हाहाहा तू मसखरी बहुत करता है साइकिल
जाने वाले के लिए क्या मुश्किल भला
और चढाई उतराई क्या है
आँखों का धोखा भला

जी ठीक है फिर
गुरूजी भी जा रहे हैं
उन्हीं के साथ हो लेता भला
और साथ हैं साथी जो
भरोसे के बन्दे सब नेक हैं भला
मुझे मरने ना देंगें ये मुझे पता

वाह बेटा क्या खूब कहा
नेकी भरोसा इस ज़माने में कहाँ मिलता है भला

ऐ मेरे रहनुमा कभी इन लोगों से भी मिलना भला
गुरूजी और मुझे मिला कर 
इस यात्रा पर कुल हम पांच हैं भला


गुरूजी को तो संसार है जानता उनके बारे में क्या लिखूँ भला
फिर मैं खुद हूँ अपने मुँह मियाँ मिट्टठू क्या बनूँ  भला
फिर है हमारा सिरमौरी नौजवान 
नाम विवेक ठाकुर भला
समझो जैसे है एक दम गाऊ
पहाड़ी मित्र है दम एक दम पक्का भला



एक है चौधरी अमनदीप
सुलझा हुआ शख़्स भला
जीवन की ऐसी समझ और मज़ाकिया
बावा हर कुछ भला


और एक है सबका प्यारा रविंदर
पाल नटखट भला
जो भेड़ों को देख कर ख़ुशनुमाया ऐसे
मानों उसकी ही हों भला

वाह साइकिल वाले भाई साहब
बातों-बातों में सबका परिचय करवाया भला
पाँच तो पांडव भी थे
यही रास्ता उन्होंने भी आज़माया भला
अब यात्रा का भी कुछ सुनाओ भला


जी चले हम पाँचों चण्डीगढ़ से
7 जुलाई रात आठ बजे भोले की कृपा से
सुबह रामपुर बुशहर पहुंचे
खाये वहाँ पेट भर पराँठे
फिर एक टैक्सी वाले से चौदह सौ में
गांव जाओं तक का सौदा हुआ
जो रामपुर बुशहर से पच्चपन किलोमीटर दूर है बसा
रामपुर है शिमला ज़िले में
जाओं कुल्लू में हुआ
सतलुज जो बहती बीच दोनों के
जिसने ये बँटवारा है किया
नदियाँ तो इस ज़माने में बस सीमाएँ ही रह गयीं हैं

चण्डीगढ़ से चले हम रात आठ बजे
और सुबह आठ बजे हमने जाओं से यात्रा का श्रीगणेश था किया
सनस्क्रीन लगा चेहरे पर भोलेनाथ का गुणगान था किया
बेआरामी में इस यात्रा का आगाज़ था किया


जाओं से निकलते ही लँगर ही लँगर लगे हैं
और रास्ते के दोनों तरफ सेब के बाग़ फूले फलें हैं
और उनके आगे असली यात्रा पथ शुरू है होता
जाओं से बराहटी नाले तक तो मानों गांव महसूस होता


बराहटी नाले पर एक बीस मीटर लम्बा लकड़ी का पुल है
पुल के साथ ही बाबाओं का झुरमुट है
साथ ही प्राचीन मंदिर है
उसके बाद यात्रा का असली आनंद है

यहाँ से चढ़ाई शुरू है होती
अगर पानी की बोतल हो खाली तो
यहीं बराहटी नाले से फुल होती
आगे पानी का कोई स्त्रोत ना है

ये पहाड़ है डण्डा धार
मानों खड़े डण्डे कि चढाई 
ऊपर तो देखो 
बस चढाई ही चढाई 
चढाई है आगे अब चढ़ते चलो
बस चढ़ते चलो
रुक कर थोड़ा दम ले लो मगर
बस चढ़ते चलो चढ़ते चलो


इसके बाद पहला टेंट स्थान है जो आता
उसे कहते हैं थटीबी
सुन्दर बहुत है मन को भाता
उसके बाद है तीखी चढ़ाई
यहाँ हमने भाई पी थी चाय
उसके बाद सीधा थाचडू में ब्रेक लगाई



थाचडू जो पहुंचे तो बारिश शुरू हुई
रुके यहाँ घंटा भर जब तक ना थमीं
शाम चार बजे यहाँ से रुखसत हुए
अगला पड़ाव कालीघाटी
जिसकी चोटी पर काली माँ का मंदिर दिखे


काली घाटी जहाँ से शुरू होती है वहाँ डंडा धार ख़त्म होती है | श्रीखण्ड़ यात्रा पर सबसे पहली परीक्षा ये डंडा धार ही है | डंडा धार बराहटी से शुरू होती है और इस धार का अंत काली घाटी की उतराई शुरू होते ही होता है | ये चढ़ाई थोड़ी मुश्किल है और बहुत सारे लोग इस चढ़ाई को चढ़ते-चढ़ते बीच में थाचडू नामक स्थान पर, जहाँ टेंट आदि की सुविधा है में हथियार डाल देते हैं और पहले दिन का सुखद अंत करते हैं | खैर हम सब नौजवान थे तो बारिश रुकते ही थाचडू से निकल पड़े, तब शाम के चार बज रहे थे | थाचडू से चढाई चढ़ कर हम काली घाटी की चोटी पर पहुँचे | मौसम साफ़ नहीं था, हल्की बारिश हो रही थी और बदल छाए थे तो यहाँ से हम श्रीखण्ड़ महादेव के दर्शन न कर सके | जी इस चोटी से श्रीखण्ड़ महादेव दिखते हैं | चोटी पर काली माँ का मंदिर है और साथ ही रुकने एवं खाने-पीने की पूरी सुविधा है, बहुत सारे टेंट लगे हैं | यहाँ हमें एक गुजरती परिवार मिला जो कुछ दिनों से इसी चोटी पर डेरा जमाए था | वे बस दूर से ही श्रीखण्ड़ दर्शन कर खुश थे और थोड़ी बातचीत करने पर पता चला की वे ऊपर श्रीखण्ड़ पर चढ़ाने के लिए खूब सारी पूजा सामग्री भी लाए हैं | हमारी हिम्मत देख उनको यकीन हो गया था कि उनका अधूरा कार्य अब हमारी टीम ही पूरा कर सकती थी | उनकी पूजा सामग्री विवेक जी ने अपने झोले में रख ली जिसका अंदाज़न वजन एक किलो तो रहा ही होगा | जिस ऊंचाई पर लोग (ये स्थान भी 3800 m  कि ऊंचाई पर है) अपना आपा खो देते हैं उस ऊंचाई से परोपकार शुरू कर श्रीखण्ड़ तक पहुँचाना, ऐसा कार्य तो हमारे विवेक जी जैसा धार्मिक व्यक्ति ही कर सकता है |

अलविदा कह उनको हम रुखसत थे हुए
उतरे काली घाटी
और समझो की उतारते ही गए
शंका एक तभी मेरे दिल में थी आयी
उतर तो गया तू लौटते समय कैसे चढ़ेगा भाई


काली घाटी के नीचे है भीम तलाई
यहाँ है लगा लँगर पेट भर खाओ मेरे भाई
खाना रात का हमने यहीं खाया
फिर थोड़ा आगे जाने का मन बनाया
और कुछ और आगे जा कर हम रुक गए
रात रुकने मात्र का सौदा टेंट वाले से सात सौ में कर गए
इस तरह हम अपने पहले दिन का सफर 
भीम तलाई में ख़त्म कर गए

सुबह उठे जल्दी
साढ़े पाँच बजे ही चल पड़े
और पहुंचे अगले पड़ाव
जिसे कहते हैं कुंशा सभी
ये जगह है बहुत सुन्दर
देखते ही रह गए सभी



यहाँ गुरूजी को मिले उनके दोस्त चीकू जी
जो आये हैं हिमालय की सफाई को जी
ये लोग वो हैं जो पहाड़ों को सवच्छ हैं बनाते
आपके हमारे द्वारा फैलाया कचरा उठाते
(हीलिंग हिमालया एक NGO है जो पहाड़ों को सवच्छ रखने का काम करती है )



कुंशा से चले तो भीम द्वार पहुँचे
यहाँ हम सुबह के नौ बजे पहुँचे
और पता चला की अब आगे रुकने की कोई और जगह नहीं है
पार्वती बाग़ में बस हैं फौजी और कोई नहीं है
और वो भी सुबह दस बजे के बाद किसी को ऊपर ना जाने देंगे
अरे हम तो वैसे ही हैं थके हुए और आज के लग गए यहीं डेरे
एक टेंट वाले के यहाँ रुकना हुआ
कुछ सोए कुछ उठे
कुछ घूमना फिरना हुआ


भीमद्वार के ऊपर की और है फूलों की घाटी
मिलते यहाँ है फूल भाँती भाँती
यहाँ हमने कुछ लम्हे बिताए
कुछ चित्र खींचे 
कुछ ध्यान लगा आए




अगली सुबह या रात ही कहूँ 
हम चले अँधेरे में तब दो थे बजे
पराँठे पाँच टेंट वाले से पैक थे करवाए
और ज़ोरों शोरों से जैकारे लगाए
और हम चल दिए कैलाश की ओर


रात दो बजे हम भीम द्वार से श्रीखंड महादेव कि ओर चल पड़े | हमने अपने जल्दी चलने कि सूचना पहले से ही टेंट वाले को देदी थी और रास्ते के लिए उससे पाँच परांठे भी पैक करवा लिए थे | हमने अपना गैर ज़रूरी सामान भी यहीं टेंट वाले के पास रख दिया और बस जरुरत भर की चीज़ें लेकर श्रीखण्ड़ महादेव जी के दर्शनों को निकल पड़े | इतनी जल्दी चलने से हमें ये फायदा हुआ कि रास्ते में हमें भक्तों का ट्रैफिक कम मिला और हमारे पास दिन में वापिस लौट आने के लिए काफी समय था | रात के समय गुरुपूर्णिमा के चाँद में पार्वती बाग़ का नज़ारा देखने लायक था |    

वाह भाई वाह क्या नज़ारा है दिखता
धरती का नहीं ये तो स्वर्ग सा है लगता
चाँदनी चाँद की दूधिया सब कर देती
लगता है ऐसे
कण-कण चाँदी है लेपी
और हम बढ़ते-बढ़ते ऊपर चढ़ते जाते
देखते अग्रणियों को जो जुगनुओं से भाते
या कभी देखते बायीं ओर जहाँ ये दो झरनों का संगम
या देखते चाँदनी में चमकते फूलों की चादर
ये आलोकिक सा नज़ारा पार्वती बाग़ है कहलाता
चमकती बूटी बूटी हर फूल मुस्काता 
चाँद आसमान में कभी बादल के पीछे है छुपता
कभी दिखाता है रास्ता कभी आँख मिचौनी है करता
मज़ा चांदनी रात का और इन नज़ारों का लेते
चढ़ते-चढ़ते हम पार्वती बाग़ पहुँचे

खैर कल की सारी जानकारी गलत निकली
यहाँ हैं तम्बू खूब रहने की जगह भी
पार्वती बाग़ के आगे कोई तम्बू नहीं है
ये अंतिम स्थल जहाँ रुकने की जगह है

आस-पास के क्षेत्रों से आए स्थानीय भक्त अपनी पहले दिन की यात्रा यहीं पार्वती बाग़ में ख़त्म करते हैं | सुबह जल्दी उठ कर आगे पथरीली घाटी पार कर नैन सरोवर के अर्ध बर्फ वाले पानी में नहाते हैं और दुर्गम पथ को आसानी से पार करते हुए श्रीखण्ड़ महादेव के दर्शन कर उसी दिन वापिस लौट आते हैं | यात्रा के दौरान इन भक्तों को पूरी इज्जत के साथ रास्ता दें क्यूँकि बहुत सारे तो नंगे पाओं ही इस यात्रा को पूरा करते हैं | श्रीखण्ड़ महादेव की यात्रा का रास्ता बहुत ही संकरा और दुर्गम है | सामने से आने वाले भक्तों को रुक कर पास देना पड़ता है | कृपया संयम बनाए रखें आपकी जरा सी जल्दबाजी बहुत नुक्सान दायक हो सकती है | इस यात्रा में खच्चरों की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है | सारा सामान नेपाली अपनी पीठ पर ढ़ोते हैं, तभी जो पेप्सी की बोतल तीस रूपए की आती है वो ऊपर सौ की मिलती है |

पार्वती बाग़ के बाद है असली परीक्षा
पत्थर ही पत्थर हैं ना है रास्ता दिखता
रात भी है ये चाँदनी मतवाली
कभी घुप अँधेरा कभी है उजाली

चढ़ता-चढ़ता मैं सबसे आगे था निकला
पहुँचा नैन सरोवर तक, ना साथी कोई दिखता
फिर दूर से जानी-पहचानी आवाज़ आयी
ओ पण्डत ! किधर गया तू मेरे भाई

भाई विवेक मैं तो ऊपर चढ़ गया हूँ
जैसे चल रहे थे सब लोग मैं भी वैसे ही चढ़ गया हूँ
तुम लोग चालाक निकले शॉर्टकट हो बनाते
मैं चढ़ गया खड़ा पहाड़ तुम ग्लेशियर चढ़ कर आते

पर तुम्हारे शॉर्टकट का एक नुक्सान निकला
मैं भर लाया नैन सरोवर से पानी
जिसको बाईपास कर तुम्हारा काफिला निकला
जी ये वही है नैन सरोवर जहाँ आँसू हैं इकठ्ठा



सुबह साढ़े पाँच बजे का समय होगा | मैंने नैन सरोवर के बाहर जूते उतारे और बोतल लेकर आगे बढ़ा | यहाँ एक मंदिर बना है और मंदिर से सटा हुआ आगे जाने का द्वार है | शुरुआत में तो ठोस बर्फ़ है लेकिन जैसे जैसे आप पानी के करीब जाते हैं वैसे-वैसे आपको ठण्ड का एहसास होने लगता है | पानी भरते समय बर्फ़ पर ही रहें पानी में पैर डालने की गल्ती न करें, पैर घंटे भर के लिए सुन्न हो जायेंगे | पानी भरते हुए जब मुंडी घुमा कर देखा, इसी सरोवर के किनारे पर भक्त स्नान कर रहे थे | स्नान करने का मन तो बहुत हुआ पर हिम्मत नहीं कर पाया | एक तो सब साथी ग्लेशियर से होते हुए नैन सरोवर आए बिना सीधा ऊपर पहुँच चुके थे और अकेला होने के कारण मैं सोच रहा था कि स्नान के चक्कर में जम ही गया तो निकालेगा कौन ? 
पानी का आखरी स्त्रोत ये नैन सरोवर ही है | आप जाएँ तो यहाँ भरपूर पानी पिएं और अपनी बोतल फुल भरके ही आगे जाएँ | इसके बाद पानी नहीं मिलेगा और चढाई बहुत कठिन है, इसलिए यहाँ से पानी का इंतज़ाम करके ही चलें |
खैर मैंने अपनी बोतल भरी और वापिस आ गया | अगली बार जाऊँगा तो जरूर डुबकी लगा कर आऊँगा, हे भोलेनाथ इस बार मुझे माफ़ करना......     


नैन सरोवर से है बर्फीली चढाई
पहले खड़ा ग्लेशियर फिर तीखी चट्टानें भाई
पत्थर ही पत्थर और उससे बड़े पत्थर
फिर बर्फ की चादर और उसके बाद और बड़े पत्थर

अब जिस जगह हूँ उसे कहते भीम बही भाई
यहाँ भीम महाराज ने हिसाब रखा भाई
चट्टानों में छिद्र हैं जहां दर्ज हिसाब उनका
ये वादी उन्हीं की ये रास्ता भी उनका

अंत में हैं कुछ सलीके से लगीं सीढ़ियां
इतना सलीका की मिस्त्री का काम लगे
कहते की पांडव सवर्ग का राह गढ़ने चले
पर पूरा ना कर सके



एक बर्फ का ग्लेशियर पार किया
फिर चट्टानों के बीच से जब निकला
वाह भोलेनाथ का प्रचण्ड सवरूप दिखला
खंड-खंड अखण्ड ये श्रीखण्ड़ भाई
शिव रूप प्रचण्ड ये श्रीखण्ड़ भाई

दर्शन मात्र से थकान चली गई और
परिक्रमा करने की ऊर्जा आ गई
चले नंगे पाओं बर्फ पर परिक्रमा को
मिला ना ऐसा सकूं कभी मन को

अंग-अंग जैसे ज्वाला प्रचण्ड
ज्वाला स्वरूप शिव 
लपट सा दिखता श्रीखण्ड़
शीश नवाया माथा टेका 
और गर्दन घुमा कर 
पूरा नज़ारा भी देखा 


पीछे श्रीखण्ड़ के जो चोटी है दिखती
कहते उसे कार्तिकेय
क्या मनोरम है लगती
सामने माँ पार्वती सहित गणेश विराजे
पहुँच कर यहाँ भक्त 
क्या ज़ोर से जैकारे लगाते


खड़ा आज तुम्हारे प्रांगण में
हर दिशा में देखता हूँ
इस धरती को देखता हूँ
आकाश देखता हूँ
और देखता हूँ बीच में फसे बदल हैं जितने
भाई कितना उपर आ गया मैं 
सब गौण हैं लगते

कुछ देर बाद सब साथी भी आए 
मिलके हम सबने जय भोले के जैकारे लगाए
फिर गुरूजी ने सुदूर पहाड़ों में 
किन्नर कैलाश के दर्शन करवाए


वह देख रहा दूर से
सब पर निगाह पूरी रखता 
वही खिलाता है फूल 
उसी की मर्ज़ी से पत्ता हिलता
बैठा है वो अंदर 
या जा बसा पहाड़ में 
खोजना ही फ़र्ज़ हमारा 
खोजें जितना खोजें 
पाएँ अपने आप में 


बादलों के बीच उभरे पहाड़
जैसे नोक कोई चीरे 
बादलों की चादर को लगातार
नज़ारा ये नज़ारा देखते ही है बनता   
ऊपर से ये जहान देखो कितना मनोरम है लगता

कर प्रणाम कैलाशों को मैं बैठ गया हूँ 
आलोकिक सौंदर्य से प्रफुलित हुआ, बैठ गया हूँ 
बैठ गया हूँ शांति से तुम्हारे प्रांगण में


मैदान लाँघ आया हूँ
गाँव पीछे छोड़ आया हूँ
पर्वत चढ़ आया हूँ
झरने, बर्फ़ और पत्थर
सब पार कर आया हूँ
अब थक कर बैठ गया हूँ
तुम्हारे प्रांगण में
जो माँगने आया था
वो भूल चुका हूँ
जिसके मिलने कि कोई आशा न थी
वो पा चुका हूँ
अब थक कर बैठ गया हूँ
तुम्हारे प्रांगण में
सुना था यहाँ से सीढ़ी स्वर्ग को जाती है
फिर वही सीढ़ी स्वर्ग भी तो धरा पर खींच लाती है
मैंने जो भी देखा वो तुम्हीं ने दिखलाया
भेद जो भी खोला तुम्हीं ने बतलाया
और अब मैं थक कर बैठ गया हूँ
तुम्हारे प्रांगण में
मुझे तुमसे न कोई शिकायत
न है मेरी कोई ख़्वाहिश
बस ऐसे ही थका कर बैठा लिया करना
तुम मुझे अपने प्रांगण में.....


हम सबने श्रीखण्ड़ के दर्शन किए और विवेक जी के झोले में रखी गुजरती परिवार की पूजा सामग्री विधिवत रूप से भोलेनाथ जी को अर्पित की | कुछ चित्र खींचे, कुछ नज़ारों का आनंद लिया |  मौसम का बदलता मिज़ाज देख नीचे उतरना ही ठीक समझा |

कुछ ही देर में 
बादल छाने लगे
उमड़ घुमड़ कर आने लगे 
नीला आसमान सफ़ेद हो गया
मानो भोलेनाथ ने जटाएं बिखेर दी हो
चढ़ता दिन ढलती शाम सा हो गया 
सुनहरी धूप की जगह 
धुंध ने ले ली
और मखमली झोंकों की जगह सर्द हवा ने ले ली
चल भाई चल अब लौट चलें
बारिश आने ही वाली है बस
चलो अब लौट चलें


दस बजे चले हम ऊपर श्रीखण्ड़ से
बर्फ में गिरते फिसलते और सम्भलते
उतरते जाते हम पहाड़ के कंधे से
कुछ घंटा भर उतरने के बाद 
एक चट्टान पर सब चढ़ गए 
आस-पास बर्फ़ ही बर्फ़
थोड़ी थकान दूर करने को रुक गए
और खाए हमने वो टेंट वाले से लाए पराँठे
ठन्डे जैसे जमें हुए हों पर स्वाद में निराले
ये भोजन काफी समय तक यादगार रहेगा
और ये नज़ारा तो ताउम्र याद रहेगा 


उतरते-उतरते हम नैन सरोवर तक आ गए
पानी पिया सबने, अपनी प्यास भुझा गए
बादाम बिस्कुट का भोग भी लगाया 
थोड़ा आराम किया थोड़ा सुस्ताया

नैंसरोवर से चले नीचे को 
तो बारिश थी आयी 
निकालो सब रेनकोट
अपना-अपना बचाव करो भाई

नैंसरोवर से पार्वती बाग़ 
पत्थर ही पत्थर 
ऊपर से ये बारिश 
अब फिसलन ही फिसलन
धुंध घनी इतनी 
रास्ते का निशान भी नहीं दिखता 
ऐसी स्तिथि में तो बस अंदाज़ा चलता 

बचते बचाते हम पार्वती बाग़ पहुँचे
यहाँ से सीधा नीचे भीम द्वार पहुँचे 
वहाँ उसी टेंट वाले के पास मैगी खाई 
और फिर चल पड़े और नीचे को 
अभी तो बस चार बजे हैं मेरे भाई 


बारिश आती जाती रही 
और हम उतरते रहे
उतरते उतरते हम कुंशा पहुँचे
शाम भी धुंधली सी थी 
जब हम कुंशा पहुँचे 
बस आज का डेरा यहीं जम गया 


सुबह उठे जल्दी हम 
फिर उतरने लगे नीचे 
लेकिन एक सोच जो बार-बार ध्यान खींचे
कैसे चढ़ेगा काली घाटी कि चढ़ाई 
जिसको बड़े मज़े से उतर आया था मेरे भाई


कुंशा से हम भीम तलाई पहुँचे 
यहाँ पिया पानी
और सब ऊपर को देखें 
सामने है काली घाटी कि चढ़ाई 
देख कर ही जिसको साँस फूल गई मेरे भाई 


बारिश ने भी अभी तक था डेरा जमाया
और काली घाटी का हर पत्थर 
फिसलन कि माया 
धीरे-धीरे हम बस ऊपर चढ़ते जाते
कुछ देर रुकते साँस लेते 
और फिर चढ़ते जाते 

पचास मिनट में हम ऊपर पहुँचे
हमको ही पता ये पचास मिनट कैसे बीते
अब तो बस उतराई ही है भाई 
उतराई उतराई जाओं तक उतराई

ग्यारह बजे हम थाचडू पहुँचे 
रुके नहीं यहाँ 
सीधा नीचे थटीबी पहुँचे 
जहाँ जाती बार पी थी
वहीँ आती बार भी पी चाय
खाये बादाम और भुने चने मेरे भाई

यहाँ से चले तो सीधा बराहटी रुके 
सीधा नाले में नहाने को घुसे 
यहाँ ठन्डे पानी में डुबकी लगाई 
और यात्रा कि सारी थकान मिटाई

अब चले बराहटी से तो सीधा जाओं में रुके 
लँगर में खाए परांठे खीर चाय भी पिए  
फिर रामपुर के लिए एक गाड़ी बुक कि 
आए थे जितने में ये भी उतने में ही कि 
और शाम 5  बजे हम रामपुर पहुँचे 

सीधा गए बसस्टैंड 
देखा बस लगी है 
सीधा चण्डीगढ़ कि टिकट कटवाई
और रात दो बजे चण्डीगढ़ पहुँचे मेरे भाई 

उसके बाद तो सब सो गए 
सो सो के सबने थकान मिटाई 
अगले दिन शाम तक 
सबको कहीं होश थी आयी 

कृपा भोले नाथ कि यात्रा सफल रही 
हम सबको ही भोले ने दर्शन दिए जो
सब कुशल मंगल पहुँचे इतनी कृपा की
माफ़ करना गर कोई त्रुटि हुई हो 
करना कृपा हमपर मुर्ख अज्ञानी समझ कर

मेरे रहनुमा इस तरह ये यात्रा पूर्ण हुई 
और बहुत कुछ इस यात्रा से मैंने सीखा भला 
बहुत दिनों बाद इतना आनंद आया 
अगली बार भी ऐसा ही कोई स्थान सुझाना भला

हाँ साइकिल वाले भाई क्या खूब कही 
यात्रा ऐसी की शब्दों से ही करवा दी भला
चल चलता हूँ अब मैं, काम बहुत है 
अगली यात्रा पर तुझे मिलता मैं भला 

इस यात्रा के कुछ पहलू

श्रीखण्ड़ महादेव समुद्रतल से लगभग 5100 m मीटर की ऊंचाई पर है | इस यात्रा को अपनी पहली यात्रा कभी न बनाएँ और भरोसेमंद लोगों के साथ ही जाएँ | इस यात्रा के दौरान AMS का खतरा है | AMS की पूरी जानकारी और दवाई जरूर लेकर जाएँ | शारीरिक शक्ति से आप दो कदम ज्यादा चल लोगे, मानसिक शक्ति से आप चार कदम ज्यादा चल लोगे, पर यहाँ आपको आपकी सिर्फ और सिर्फ इच्छा शक्ति ही लेकर जाएगी | भगवान और अपने आप पर भरोसा रखें और चलते रहें |
इस यात्रा के दौरान बहुत बार जमें हुए झरने, ग्लेशियर और बर्फ़ पर चलना होता है | सावधानी से चलें और बर्फ़ पर पहले एड़ी से ठोक कर जगह बनाएँ फिर वज़न डालें | बर्फ़ पर चढ़ने की बजाए उतरने में ज्यादा मुश्किल होती है, सावधान रहें और एड़ी वाला फार्मूला याद रखें | 

ट्रेकिंग पोल या लकड़ी की छड़ी बहुत जरुरी है, ज़रूर लेकर जाएँ या लौट कर आते हुए यात्रियों से माँग लें | ये संतुलन बनाने से लेकर बर्फ़ जाँचने तक के सारे कामों में आपका साथ देगी |

रेनकोट या पोंचो या बारिश से बचने का उपाय जरूर करके जाएँ | यहाँ आपको बारिश मिलेगी ही मिलेगी | अपना सारा सामान पॉलिथीन में डाल कर फिर बैग में डालें | इससे कपडे सूखे रहेंगे |

टेंट में सोना उतना आसान भी नहीं होता ख़ास कर यात्रा के समय | टेंट में कम्बल यात्रियों की संख्या देख कर दिए जाते हैं, मसलन कभी आपको तीन भी मिल सकते हैं और कभी एक से ही काम चलाना पड़ सकता है | अगर स्लीपिंग बैग उठाने का ज़ज़्बा रखते हों तो ले जाएँ |

हम चण्डीगढ़ से रात आठ बजे चले और सुबह आठ बजे हमने चढ़ना शुरू कर दिया | खैर अगले दिन हम बस पाँच- छः किलोमीटर ही चले और भीम द्वार सुबह दस बजे पहुँचने के बाबजूद हम आगे नहीं गए | शरीर को अभ्यस्त होने के लिए थोड़ा समय चाहिए वो उसे जरूर दें | पहाड़ों में आए हैं तो आराम से चलिए थोड़ा समय नज़ारे देखने में भी बिताईये |

हम पाँच लोगों ने इस यात्रा को पूरा करने में चार दिन तीन रात का समय लिया | पहले दिन हम काली घटी के नीचे भीम तलाई में रुके | दूसरे दिन हम भीम द्वार में रुके और इस दिन का अधिकतर समय आराम में ही बीता जिससे की शरीर को रेस्ट भी मिली और वो अभ्यस्त भी हो गया | तीसरे दिन हम श्रीखण्ड़ महादेव के दर्शन कर वापिस कुंशा में आ कर रुके, इस दिन सबसे ज्यादा मेहनत की गई | हम रात दो बजे ही भीम द्वार से निकल गए थे और सुबह आठ बजे हमने श्रीखण्ड़ महादेव के दर्शन किये | दोपहर दो बजे तक हम वापिस भीम द्वार आ गए जहाँ हमने थोड़ी देर विश्राम किया और रात कुंशा में काटी | चौथे दिन कुंशा से रामपुर होते हुए वापिस चण्डीगढ़ पहुँच गए | 
   
यात्रा ख़र्च

चण्डीगढ़ से रामपुर तक की बस टिकट = 370 रुपए/प्रतिव्यक्ति 
रामपुर से जाओं प्राइवेट टैक्सी = 1400 रुपए पाँच लोगों के
भीम तलाई में टेंट ख़र्च = 700 रुपए सिर्फ सोने के पाँच लोगों के
भीम द्वार में टेंट एवं दो टाइम खाने का ख़र्च = 2100 रुपए पाँच लोगों के 
कुंशा में टेंट एवं रात का खाना = 1000 रुपए 5 लोगों के 
चाय = 15  रूपए कप (थटीबी में) और 25 रुपए कप भीम द्वार में 
मैगी = 40 रुपए की एक भीम द्वार में 
जाओं से रामपुर वापिसी प्राइवेट टैक्सी में = 1400 रुपए पाँच लोगों के (वैसे शेयर्ड टैक्सी में किराया 150 से 300 रुपए सवारी है पर उसका भर जाने का इंतज़ार करना पड़ता है ) 

एक व्यक्ति का यात्रा बजट = लगभग 2500 रुपए 

अगर जा रहें हों तो कम से कम 5000 कैश में लेकर जाएँ | ऊंचाई के साथ कीमत भी बढ़ती है और भूख भी | हम यात्रा से दो दिन पहले गए थे तो हमें इतने लँगर और मुफ्त टेंट नहीं मिले जितने यात्रा के समय होते हैं | आप यात्रा के समय जा सकते हैं और काफी पैसे बचा सकते हैं, पर उस समय भीड़ बहुत होगी | 
  
कुछ अन्य जानकारी :

इस यात्रा की कुल दुरी लगभग 46 किलोमीटर है, आना-जाना मिला कर |
आधिकारिक यात्रा के समय यात्रियों का मेडिकल चेकअप यात्रा की शुरुआत में ही होता है, जिसके लिए 50 रुपए शुल्क लिया जाता है | अनफिट यात्रियों को वापिस भेज दिया जाता है |
अपने साथ बादाम, काजू अदि सूखे मेवे भरपूर मात्रा में रखें | इस यात्रा में आपका बहुत ज़ोर लगने वाला है |
थाचडू तक मोबाइल में पूरा सिग्नल आता है | इसके बाद सिग्नल कुंशा में मिलेगा और उसके आगे श्रीखण्ड़ महादेव की चोटी पर |
आधिकारिक रूप से श्रीखंड कैलाश यात्रा श्री पंचदशनाम जूना अखाडा के नेतृत्व में ज्यूरी के महादेव मंदिर से शुरू होती है | छड़ी यात्रा गुरुपूर्णिमा को श्रीखंड महादेव पहुँचती है | ये रास्ता अलग है और अधिक दुर्गम है |  

दूरी सम्बन्धी जानकारी :

जाओं से बराहटी नाला = 5.6 Km
बराहटी नाले से थाचडू = 4.3 Km
थाचडू से काली घाटी टॉप = 1.6 Km
कालीघाटी टॉप से कुंशा = 2.8 Km
कुंशा से भीमद्वार = 3.6 Km
भीमद्वार से पार्वती बाग़ = 1.3 Km
पार्वती बाग़ से भीमबही = 3.7 Km
भीमबही से श्रीखण्ड़ महादेव = 0.7 Km

कुल दूरी = 23.6 Km (एक तरफ़ की)

अगर आप जाएँ तो पास ही सराहन में भीमाकाली का मंदिर है वहाँ जरूर जाएँ | जैसे श्रीखण्ड़ यात्रा भस्मासुर से जुड़ी है वैसे ही भीमाकाली का मंदिर महिषासुर वध से जुड़ा है | भीमाकाली मंदिर, सराहन वही स्थान है जहाँ सती माता के कान गिरे और ये इक्क्यावन शक्ति पीठों में से एक है | बारासुर और कृष्ण जी का युद्ध भी यहीं हुआ था और वर्तमान में यहाँ एक पाँच मंजिला मंदिर है | सराहन का भीमाकाली मंदिर कोट शैली में बना है और अद्भुत कला का नमूना है |
खैर अब अगर रामपुर की बात करें तो जो कभी बुशहर की राजधानी था, आज अपना बहुत सारा इतिहास खो चुका है | अब तो ये सिर्फ एक बाजार रह गया है जहाँ लोग अपनी जरुरत का सामान लेने आते हैं |



गर है स्वर्ग ज़मीं पर 
तो है वो यहीं 
ये नज़ारे ये पहाड़
धरती के तो नहीं
और श्रीखंड जो 
उठा हुआ है अलग सबसे
वो शिव सवरूप 
कहीं स्वर्ग की अंतिम सीढ़ी तो नहीं

वो बही खाता भीम का 
वो पार्वती माँ का नैन सरोवर 
वो बाग़ अठखेलियों का 
वो झरने जो जुदा थे मिले यहीं 
और ये फिसलन चट्टान की
मैं मर ही न जाऊँ यहीं

ऊपर चढ़ना आसान है 
नीचे उतरना मुश्किल
और ऊपर से ये फिसलन
कृपा रही भोलेनाथ की 
जो आ गया सकुशल

जय भोले

उच्याँ पहाड़ाँ दियाँ चढ़ाइयाँ चढ़ी ने
मेरे भोले जी दा डेरा
दुनिया जान्दी मैं भी जाणा 
भोले जी दा दर्शन पाणा
ऐ दिल करदा मेरा 
भक्ता मेरे भोले जी दा डेरा
उच्याँ पहाड़ाँ दियाँ चढ़ाइयाँ चढ़ी ने
मेरे भोले जी दा डेरा 

श्रीखण्ड़ महादेव की जय


 "ये यात्रा कठिन भी नहीं है और आसान भी नहीं है"